Saturday, June 2, 2001

अनकहा

हम क़लम थाम कर सोचते रह गए
भाव आँसू बने, आँख से बह गए
इक ग़ज़ल काग़ज़ों पर उतर तो गई
दर्द दिल के मगर अनकहे रह गए

© चिराग़ जैन