Sunday, September 16, 2018

आशाओं पर आघात

पतझर का आना निश्चित था
पत्ते झर जाना निश्चित था
हरियाली की आशाओं पर, बादल ने आघात करा है
आँगन में जो ठूठ खड़ा है, वो सावन के हाथ मरा है

दुःशासन ने चीर हरा तो ठीक समय आ पहुँचे माधव
भीष्म काल बनकर बरसे तो तोड़ प्रतिज्ञा पहुँचे माधव
एकाकी होकर जूझा अभिमन्यु अकेला षड्यंत्रों से
आस रही होगी उसको भी, माधव के अभिनव तंत्रों से
उसका घिर जाना निश्चित था
भू पर गिर जाना निश्चित था
पर उस दिन जो वीर मरा है, उम्मीदों के साथ मरा है
आँगन में जो ठूठ खड़ा है, वो सावन के हाथ मरा है

जिस रानी ने जर्जर रथ की कील बना दी अपनी उंगली
दशरथ के रथ के पहिये के बीच फँसा दी अपनी उंगली
अंतर कभी नहीं रखती हो जो सौतन की संतानों में
ऐसी रानी रूठ गई तो क्या मांगेगी वरदानों में
राघव को वनवास; असंभव
रघुकुल को संत्रास; असंभव
पहले यह विश्वास मरा है, दशरथ उसके बाद मरा है
आँगन में जो ठूठ खड़ा है, वो सावन के हाथ मरा है

© चिराग़ जैन

1 comment:

  1. chirag ji...shabd nahi hai aapki kalpanao ke ahsas ko kagaj per vyakt karne ke liye..thoda kuch toota foota mai bhi likhane ka prayas karta hu....pahle KV sir ko apna aadarsh manta tha per aapki poetry lajwab hai...ab koi aur ki aayshyakata nahi....mere blog per aapki kavita aapke name se post karne ka orayas shuru kiya hai.....apna snehil dost banaye rakhana....

    ReplyDelete