धूप में निखरोगे मेरी छाँव में जल जाओगे
इक पहेली हूँ, कहाँ तुम ढूंढने हल जाओगे
बर्फ़-सी ठंडक तो उसकी बात में होगी मगर
छू लिया जिस पल उसे उस पल ही तुम जल जाओगे
विषधरों के दंश का संकट भी झेलोगे ज़रूर
जब कभी लेने किसी जंगल से संदल जाओगे
धूप बनकर तुम दलानों में पसरते हो मगर
जब दरख्तों के तले आओगे तो ढल जाओगे
या तो तुम हमसे कोई रिश्ता रखोगे ही नहीं
या ज़माने की तरह तुम भी हमें छल जाओगे
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Tuesday, April 29, 2003
Monday, April 14, 2003
भीमराव अंबेडकर
गुदड़ी के लाल ने दिखाया था कमाल देखो
सारी दुविधाओं का निदान ले के आया था
परेशानी, दुख और ग़रीबी में जो जन्मा था
वही भारती का स्वाभिमान ले के आया था
भारत की खोई आन-बान ले के आया; औ
लोकतन्त्र वाला यश-गान ले के आया था
भारती का एक अलबेला अनमोल पूत
भारत के लिए संविधान ले के आया था
© चिराग़ जैन
सारी दुविधाओं का निदान ले के आया था
परेशानी, दुख और ग़रीबी में जो जन्मा था
वही भारती का स्वाभिमान ले के आया था
भारत की खोई आन-बान ले के आया; औ
लोकतन्त्र वाला यश-गान ले के आया था
भारती का एक अलबेला अनमोल पूत
भारत के लिए संविधान ले के आया था
© चिराग़ जैन
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