Friday, June 6, 2003

बावरा कवि

हँसने के लिए कारणों का मोहताज नहीं
आँसुओं का ख़ूब अनुभवी हो गया हूँ मैं
सारी दुनिया को आज अपना-सा लगता हूँ
अपनों के लिए अजनबी हो गया हूँ मैं
झूठ-अनाचार-बेईमानी की बदलियों में
सच के रवि की कोई छवि हो गया हूँ मैं
बावरेपने में घूमता हूँ दुनिया को भूल
तब लगता है एक कवि हो गया हूँ मैं

© चिराग़ जैन