Tuesday, July 8, 2003

सूरज

फिर अंधेरा निगल गया सूरज
फिर चिराग़ों को खल गया सूरज

चंद पहरों की ज़िन्दगानी में
कितने चेह्रे बदल गया सूरज

गर हुआ ऑंख से ज़रा ओझल
लोग कहते हैं ढल गया सूरज

रात गहराई तो समझ आया
सारी दुनिया को छल गया सूरज

आज फिर रोज़ की तरह डूबा
कैसे कह दूँ सँभल गया सूरज

© चिराग़ जैन