Sunday, January 23, 2005

मुक़म्मल क़लाम

सभी ग़मों को ग़ज़ल का मुकाम देता है
ख़ुदा सभी को कहाँ ये इनाम देता है
वो जिसकी एक-एक साँस जैसे मिसरा हो
वही जहाँ को मुक़म्मल क़लाम देता है

© चिराग़ जैन

Sunday, January 9, 2005

हक़ीक़त

सितम का दर्द होता है बहुत गहरा नहीं छिपता
मेरी नज़रों से आँसू का कोई क़तरा नहीं छिपता
किसी के होंठ कितनी भी अदाकारी करें लेकिन
बनावट से हक़ीकत का कभी चेहरा नहीं छिपता 

© चिराग़ जैन