Wednesday, December 5, 2007

नज़र

पलक गिरते ही पल में खेल सारे देख लेता हूँ
मैं इनसे आँख को ढँक कर सितारे देख लेता हूँ
मेरी ये बन्द पलकें दूरबीनों से कहाँ कम हैं
मैं इनमें ज़िन्दगी भर के नज़ारे देख लेता हूँ 

© चिराग़ जैन