रुके आँसू, दबी चीखें, बंधी मुट्ठी, भिंचे जबड़े
इन्हीं के तर्जुमे से मुल्क़ में विस्फोट होता है
ये बम रखने का काम अच्छा-बुरा औरों की ख़ातिर है
ग़रीबी के लिए तो सिर्फ़ सौ का नोट होता है
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Tuesday, July 15, 2008
ग़रीबी
Labels:
Chirag Jain,
Corruption,
Muktak,
Poetry,
Poverty,
Satire,
System,
Terrorism,
पद्य,
मुक्तक
Tuesday, July 1, 2008
ख़ुशियों की तस्वीर
मन के आंगन में मुस्कानों की जागीर बनानी है
अपने ही हाथों से ख़ुद अपनी तक़दीर बनानी है
हम कुछ रंग चुरा लाए हैं ख़ुशियों के गुलदस्ते से
इन रंगों से हमको जीवन की तस्वीर बनानी है
© चिराग़ जैन
Labels:
Chirag Jain,
Kavi Sammelan,
Life,
Muktak,
Philosophy,
Poet,
Poetry,
पद्य,
मुक्तक
Subscribe to:
Posts (Atom)