Tuesday, July 15, 2008

ग़रीबी

रुके आँसू, दबी चीखें, बंधी मुट्ठी, भिंचे जबड़े
इन्हीं के तर्जुमे से मुल्क़ में विस्फोट होता है
ये बम रखने का काम अच्छा-बुरा औरों की ख़ातिर है
ग़रीबी के लिए तो सिर्फ़ सौ का नोट होता है

© चिराग़ जैन

Tuesday, July 1, 2008

ख़ुशियों की तस्वीर

मन के आंगन में मुस्कानों की जागीर बनानी है
अपने ही हाथों से ख़ुद अपनी तक़दीर बनानी है
हम कुछ रंग चुरा लाए हैं ख़ुशियों के गुलदस्ते से
इन रंगों से हमको जीवन की तस्वीर बनानी है

© चिराग़ जैन