फिर से मन में अंकुर फूटे, फिर से आँखों में ख़्वाब पले
फिर से कुछ अंतस् में पिघला, फिर से श्वासों से स्वर निकले
फिर से मैंने सबसे छुपकर, इक मन्नत मांगी ईश्वर से
फिर से इक सादा-सा चेहरा, कुछ ख़ास लगा दुनिया भर से
फिर इक लड़की की रुचियों से, जीवन के सब प्रतिमान बने
फिर इक चेहरे की सुधियों से, सुन्दरता के उपमान बने
मुझको लगता था ये सब कुछ शायद इस बार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
फिर से मेरे मोबाइल में इक नम्बर सबसे ख़ास बना
फिर इक सोशल प्रोफ़ाइल से, मन का मधुरिम अहसास बना
फिर से मोबाइल की घंटी, आँखों की चमक बढ़ाती थी
फिर से इक लड़की की फोटो, मुझसे घण्टों बतियाती थी
उसको मैसिज कर सोना था, उसके मैसिज से जगना था
उसके भेजे हर इक मैसिज को अलग सहेजे रखना था
सोचा था हम पर पागलपन हावी इस बार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
फिर से इक चंचल लड़की की हर बात सुहानी लगती थी
वो लड़की बहुत सयानी, पर दुनिया दीवानी लगती थी
उसकी ख़ुशियाँ, उसके सपने, उसकी हर चीज़ ज़रूरी थी
बाकी के सारे काम महज दुनिया की इक मजबूरी थी
फिर से मैं सारी दुनिया की नज़रों में इक बेकार हुआ
फिर से ख़र्चों का ग्राफ़ बढ़ा, आमदनी बंद, उधार हुआ
मेरा मस्तिष्क कभी दिल के हाथों लाचार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
फिर से कुछ बेमतलब बातें, इन अधरों पर मुस्कान बनीं
फिर से इक लड़की की यादें, तन्हाई में वरदान बनीं
फिर से नयनों की कोरों पर, इक आँसू आ ठिठका, ठहरा
फिर से उसकी मुस्कानों ने सपनों पर बिठलाया पहरा
फिर से मेरी कविताओं का रस बदला औ’ शृंगार सजा
फिर से गीतों में पीर ढली, फिर से ग़ज़लों में प्यार सजा
मेरे कवि पर इक लड़की का, इतना अधिकार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
शायद मेरी मन-बगिया में कुछ पावन पुष्प महकने थे
शायद मेरे काव्यांगन में कुछ अनुपम गीत उतरने थे
शायद यह फूल मुहब्बत का खिलना था और बिखरना था
शायद यह सब निर्धारित था, मिलना था और बिछड़ना था
शायद अहसासों की मेरे मन में इक खण्डित मूरत थी
शायद मुझको इस अनुभव की पहले से अधिक ज़रूरत थी
शायद मुझसे फिर कोमल भावों का सत्कार नहीं होता
सब अनुभव आधे रह जाते गर फिर से प्यार नहीं होता
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Monday, May 25, 2009
दूसरा प्यार
Labels:
Chirag Jain,
Comedy,
Divine Love,
Geet,
Hippocratic,
Humor,
Philosophy,
Poetry,
Romantic Poetry,
गीत,
छूकर निकली है बेचैनी,
पद्य
Location:
Delhi, India
Sunday, May 17, 2009
खालीपन
जिस दरपन ने तुम्हें निहारा, उस दरपन का खालीपन
और सघन कर देता है इस अंतर्मन का खालीपन
कल तक आंगन में उनके आने की कोई आस तो थी
अब तो भुतहा सा लगता है इस आंगन का खालीपन
सारा कुछ खोकर भी जाने किसे जीतने निकला हूँ
शायद मुझमें घर कर बैठा है रावन का खालीपन
मेरा सब कुछ ले कर भी उनका मन रीता-रीता है
मेरे भीतर भरा हुआ है, उनके मन का खालीपन
शाम उदासी ओढ़ खड़ी है, बादल ग़ायब, हवा अचल
एक परिंदा भर सकता है नीलगगन का खालीपन
© चिराग़ जैन
और सघन कर देता है इस अंतर्मन का खालीपन
कल तक आंगन में उनके आने की कोई आस तो थी
अब तो भुतहा सा लगता है इस आंगन का खालीपन
सारा कुछ खोकर भी जाने किसे जीतने निकला हूँ
शायद मुझमें घर कर बैठा है रावन का खालीपन
मेरा सब कुछ ले कर भी उनका मन रीता-रीता है
मेरे भीतर भरा हुआ है, उनके मन का खालीपन
शाम उदासी ओढ़ खड़ी है, बादल ग़ायब, हवा अचल
एक परिंदा भर सकता है नीलगगन का खालीपन
© चिराग़ जैन
Labels:
alone,
Chirag Jain,
Family,
Ghazal,
Loneliness,
Mythology,
Poetry,
ramayana,
Ravana,
Relations,
ग़ज़ल,
पद्य
Subscribe to:
Posts (Atom)