सत्य का पथ हमें क्यों जटिल से लगा
उम्र को झूठ में ढाल कर चल दिए
सादगी की सुहानी डगर छोड़ कर
ज़िन्दगानी फटेहाल कर चल दिए
जो रवैया हमें पीर देता रहा
क्यों उसी के लिए हम पुरस्कृत हुए
ज़िन्दगी पर चढ़े पाप के आवरण
पाठ जितने पढ़े सब तिरस्कृत हुए
प्रश्न तो आत्मा ने उठाए मगर
हम उन्हें बिन सुने टाल कर चल दिए
हर घड़ी भावनाएँ खरोंची गईं
हर क़दम दंभ की जीत होती रही
राजसी स्वप्न पलकें सजाए रहे
सत्व की रौशनी मौन सोती रही
लोभ की राह पर पीर रोती मिली
हम उसे और बदहाल कर चल दिए
हम ख़ुशी ही कमाने चले थे मगर
हम ख़ुशी ही गँवाते रहे उम्र भर
कौन जाने कि किस चैन के वास्ते
चैन अपना गँवाते रहे उम्र भर
उम्र भर आँकड़े ही जुटाते रहे
प्यार की जेब कंगाल कर चल दिए
भागते-दौड़ते रास्तों पर अगर
दर्द लाचार तनहा तड़पता मिला
पूस की रात में कोई बेघर दिखा
जेठ में प्यास से कोई मरता मिला
एक पल के लिए मन द्रवित तो हुआ
भावना पर क़फ़न डाल कर चल दिए
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Saturday, November 28, 2009
Sunday, November 15, 2009
बुरा मानने वाले लोग
हर आदमी के जीवन में
तीन तरह के लोग होते हैं
एक जानने वाले
एक पहचानने वाले
एक बुरा मानने वाले
तीन तरह के लोग होते हैं
एक जानने वाले
एक पहचानने वाले
एक बुरा मानने वाले
जानने वाले लोग
जीवन को बहाव देते हैं
पहचानने वाले गाहे-बगाहे भाव देते हैं
और बुरा मानने वाले
हमेशा तनाव देते हैं।
जीवन को बहाव देते हैं
पहचानने वाले गाहे-बगाहे भाव देते हैं
और बुरा मानने वाले
हमेशा तनाव देते हैं।
जानने वाले लोग
ज़िन्दगी की डोर होते हैं
पहचानने वाले बेमतलब का शोर होते हैं
और बुरा मानने वाले
न डोर होते हैं, न शोर होते हैं
ये साले कुछ और होते हैं।
बुरा मानने वाले लोग
पतझड़ में मिलते हैं
बहारों में मिलते हैं
दुश्मनों में मिलते हैं
यारों में मिलते हैं
पड़ोसियों में मिलते हैं
रिश्तेदारों में मिलते हैं।
शास्त्रीय भाषा में कहा जाए
तो जहाँ-जहाँ तक
जीवन के निशान हैं
ये बुरा मानने वाले
वहाँ-वहाँ तक विद्यमान हैं।
ये अपनी-अपनी हाँकते हैं
और सामने वाले को
कुछ नहीं कहने देते हैं।
ये न तो कभी ख़ुद ख़ुश रहते
और न किसी को रहने देते हैं।
इस प्रजाति के लोग
जब घर से निकलते हैं
तो इनका एक ही लक्ष्य होता है
और ये लक्ष्य जीवन भर अक्षय होता है
कि किसी नए आदमी से बैर ठानना है
आज फिर किसी बात का बुरा मानना है
इस लक्ष्य को साधने
ये सारा दिन भटकते हैं
गाड़ियों में चलते हैं, बसों में लटकते हैं
तरह-तरह से लोगों से अटकते हैं
दुनिया भर में अपनी राय भिड़ाते हैं
सबकी फटी में टांग अड़ाते हैं
सबकी समस्याएँ अपने ऊपर ओटते हैं
और फाइनली
किसी न किसी बात का
बुरा मान कर ही घर लौटते हैं
डिस्कवरी चैनल वाले
जब इन पर प्रोग्राम बनाएंगे
तो इनके बारे में कुछ यूँ बताएंगे
बुरा मानने वाले ये जीव
पृथ्वी के हर कोने मेें पाए जाते हैं
सामान्यतया
बुरा मानने का तत्व
मादा में नर से अधिक होता है
इन तस्वीरों में जो व्यक्ति
अपनी आँखों के ऊपर की भौंहें ताने हुए है
वह वास्तव में कैमरे से बुरा माने हुए है
इस जाति के एक किंग
नाम था उखड़सिंह
किसी के घर खाने पर गए
ऐसे ही नहीं गए
बाक़ायदा उसके बुलाने पर गए
बुलाने वाले ने ख़ूब दिया आदर सत्कार
सेवा-सुश्रुसा, अपनत्व और प्यार
हाथ जोड़कर विनम्रता का मनोयोग
स्वादिष्ट पकवान, पूरे छप्पन भोग
भेंट देकर स्वागत किया था
उपहार देकर विदा किया
घर पहुँचते पहुँचते
उखड़सिंह जी इस बात पर नाराज़ हो गए
कि अगले ने नाराज़ होने का मौका ही नहीं दिया
बुरा मानने वाली प्रजातियों के
अलग अलग रीति-रिवाज़ होते हैं
न तो ये व्यक्ति की परवाह करते हैं
न ही अवसर के मोहताज होते हैं
चाहे ये किसी को जानते हैं
चाहे नहीं जानते हैं
सबसे समभाव रखते हैं
मतलब, बराबर बुरा मानते हैं
ये अलौकिक लोग न चोर होते हैं
न मवाली होते हैं
न संत होते हैं, न आली होते हैं
ये लोग दरअस्ल बेहद ठाली होते हैं
ज़िन्दगी की डोर होते हैं
पहचानने वाले बेमतलब का शोर होते हैं
और बुरा मानने वाले
न डोर होते हैं, न शोर होते हैं
ये साले कुछ और होते हैं।
बुरा मानने वाले लोग
पतझड़ में मिलते हैं
बहारों में मिलते हैं
दुश्मनों में मिलते हैं
यारों में मिलते हैं
पड़ोसियों में मिलते हैं
रिश्तेदारों में मिलते हैं।
शास्त्रीय भाषा में कहा जाए
तो जहाँ-जहाँ तक
जीवन के निशान हैं
ये बुरा मानने वाले
वहाँ-वहाँ तक विद्यमान हैं।
ये अपनी-अपनी हाँकते हैं
और सामने वाले को
कुछ नहीं कहने देते हैं।
ये न तो कभी ख़ुद ख़ुश रहते
और न किसी को रहने देते हैं।
इस प्रजाति के लोग
जब घर से निकलते हैं
तो इनका एक ही लक्ष्य होता है
और ये लक्ष्य जीवन भर अक्षय होता है
कि किसी नए आदमी से बैर ठानना है
आज फिर किसी बात का बुरा मानना है
इस लक्ष्य को साधने
ये सारा दिन भटकते हैं
गाड़ियों में चलते हैं, बसों में लटकते हैं
तरह-तरह से लोगों से अटकते हैं
दुनिया भर में अपनी राय भिड़ाते हैं
सबकी फटी में टांग अड़ाते हैं
सबकी समस्याएँ अपने ऊपर ओटते हैं
और फाइनली
किसी न किसी बात का
बुरा मान कर ही घर लौटते हैं
डिस्कवरी चैनल वाले
जब इन पर प्रोग्राम बनाएंगे
तो इनके बारे में कुछ यूँ बताएंगे
बुरा मानने वाले ये जीव
पृथ्वी के हर कोने मेें पाए जाते हैं
सामान्यतया
बुरा मानने का तत्व
मादा में नर से अधिक होता है
इन तस्वीरों में जो व्यक्ति
अपनी आँखों के ऊपर की भौंहें ताने हुए है
वह वास्तव में कैमरे से बुरा माने हुए है
इस जाति के एक किंग
नाम था उखड़सिंह
किसी के घर खाने पर गए
ऐसे ही नहीं गए
बाक़ायदा उसके बुलाने पर गए
बुलाने वाले ने ख़ूब दिया आदर सत्कार
सेवा-सुश्रुसा, अपनत्व और प्यार
हाथ जोड़कर विनम्रता का मनोयोग
स्वादिष्ट पकवान, पूरे छप्पन भोग
भेंट देकर स्वागत किया था
उपहार देकर विदा किया
घर पहुँचते पहुँचते
उखड़सिंह जी इस बात पर नाराज़ हो गए
कि अगले ने नाराज़ होने का मौका ही नहीं दिया
बुरा मानने वाली प्रजातियों के
अलग अलग रीति-रिवाज़ होते हैं
न तो ये व्यक्ति की परवाह करते हैं
न ही अवसर के मोहताज होते हैं
चाहे ये किसी को जानते हैं
चाहे नहीं जानते हैं
सबसे समभाव रखते हैं
मतलब, बराबर बुरा मानते हैं
ये अलौकिक लोग न चोर होते हैं
न मवाली होते हैं
न संत होते हैं, न आली होते हैं
ये लोग दरअस्ल बेहद ठाली होते हैं
परेशान रहना इनकी लाइफ का फंडा होता है
कड़वा बोलना इनका परमानेंट एजेंडा होता है
कोई इन्हें ख़ुश करने की कितनी भी कोशिश कर ले
लेकिन इनका रिस्पांस बेहद ठंडा होता है
ये गले में भौंकड़ा पूरते हुए पैदा होते हैं
माथे में त्यौरियां डाले जीते हैं
और अपने जीवन में
पानी से ज़्यादा
ख़ून का घूंट पीते हैं।
मुस्कुराहट इनके पास आने से नाटती है
हंसी इन्हें काटती है
ठहाकों से ये डरते हैं
और ज़िन्दगी से इतना बुरा माने हुए हैं
कि लगभग रोज़ मरते हैं
बुरा मानना है तो ऐसे मानो
जैसे गांधी जी ने माना था
अंग्रेजों के अत्याचार का
जैसे शांतिदूत कृष्ण ने माना था
दुर्योधन के दुर्व्यवहार का
जैसे सीता ने माना था
रावण की मनमानी का
जैसे प्रह्लाद ने माना था
हिरण्यकश्यप जैसे अभिमानी का
ऐसा बुरा मत मानो
कि निरपराध अहिल्या का जीवन
पत्थर सा शाप बन जाए
ऐसे नाराज़ न होओ
कि किसी श्रवण कुमार का पुण्य
किसी दशरथ का पाप बन जाए
ऐसी गांस मत पालो
कि कुरुक्षेत्र में महाभारत खड़ी हो जाए
और ऐसी आदत मत डालो
कि कोई भी छोटी सी बात
इस अनमोल जीवन से बड़ी हो जाए
© चिराग़ जैन
कड़वा बोलना इनका परमानेंट एजेंडा होता है
कोई इन्हें ख़ुश करने की कितनी भी कोशिश कर ले
लेकिन इनका रिस्पांस बेहद ठंडा होता है
ये गले में भौंकड़ा पूरते हुए पैदा होते हैं
माथे में त्यौरियां डाले जीते हैं
और अपने जीवन में
पानी से ज़्यादा
ख़ून का घूंट पीते हैं।
मुस्कुराहट इनके पास आने से नाटती है
हंसी इन्हें काटती है
ठहाकों से ये डरते हैं
और ज़िन्दगी से इतना बुरा माने हुए हैं
कि लगभग रोज़ मरते हैं
बुरा मानना है तो ऐसे मानो
जैसे गांधी जी ने माना था
अंग्रेजों के अत्याचार का
जैसे शांतिदूत कृष्ण ने माना था
दुर्योधन के दुर्व्यवहार का
जैसे सीता ने माना था
रावण की मनमानी का
जैसे प्रह्लाद ने माना था
हिरण्यकश्यप जैसे अभिमानी का
ऐसा बुरा मत मानो
कि निरपराध अहिल्या का जीवन
पत्थर सा शाप बन जाए
ऐसे नाराज़ न होओ
कि किसी श्रवण कुमार का पुण्य
किसी दशरथ का पाप बन जाए
ऐसी गांस मत पालो
कि कुरुक्षेत्र में महाभारत खड़ी हो जाए
और ऐसी आदत मत डालो
कि कोई भी छोटी सी बात
इस अनमोल जीवन से बड़ी हो जाए
© चिराग़ जैन
Wednesday, November 11, 2009
आहट
वो तुमसे मेरी पहली मुलाक़ात थी
और सिर्फ़ तुम जानती थीं
कि आख़िरी भी…!
स्टेशन पर खड़े
चिड़चिड़ा रहे थे सभी लोग
कि ट्रेन लेट क्यों हो रही है
और हर आहट के साथ
सहम जाता था मैं
-’हाय राम!
कहीं गाड़ी तो नहीं आ रही!’
© चिराग़ जैन
और सिर्फ़ तुम जानती थीं
कि आख़िरी भी…!
स्टेशन पर खड़े
चिड़चिड़ा रहे थे सभी लोग
कि ट्रेन लेट क्यों हो रही है
और हर आहट के साथ
सहम जाता था मैं
-’हाय राम!
कहीं गाड़ी तो नहीं आ रही!’
© चिराग़ जैन
Labels:
Blank Verse,
Chirag Jain,
Love,
Poetry,
Romanticism,
छन्दमुक्त,
पद्य,
मन तो गोमुख है
Location:
Arrah, Bihar, India
Subscribe to:
Posts (Atom)