Sunday, May 22, 2011

कर्ता का सम्मान

कर्ता का सम्मान कहां है
ऐसा यहां विधान कहां है
राम-कृष्ण हैं, हर मंदिर में
तुलसी या रसखान कहां है

© चिराग़ जैन

निस्पृह

तुम
हर बार तलाश लेती हो
कोई नई वजह
नकारने की।

...और मैं
हर बार
बिना वजह
स्वीकार लेता हूँ
मन ही मन।

हर बार बदल जाता है
तुम्हारा बहाना

...और मैं
हर बार
बिना वजह
कर बैठता हूँ
गुज़ारिश।

मैं हर बार रहता हूँ
वैसा का वैसा
क्योंकि मैंने
कभी तलाशी ही नहीं 
कोई वजह
तुम्हें चाहने के लिए।

© चिराग़ जैन