Wednesday, November 21, 2012

अंजाम वहशतों का

तुम पीटते ढिंढोरा, गर बात हो ज़रा सी
कैसे किए भला फिर हैरान देशवासी
बोलो जनाब इसमें क्या चाल थी सियासी
चुपचाप क्यों चढ़ाया तुमने कसाब फांसी

पर तक न मार पाया, उस पल वहाँ परिंदा
मरते ही आपने जब दफ़ना दिया दरिंदा
जनता को भी दिखाते अंजाम वहशतों का
मर कर तो हो न जाता फिर से कसाब ज़िंदा

साहिब का इस विषय पर कोई ग़ौर तो नहीं था
जिस तरह उसको मारा, वो तौर तो नहीं था
गीदड़ के नाम पर फिर हिरनी तो नहीं मारी
था तो कसाब ही ना, कोई और तो नहीं था

© चिराग़ जैन

Tuesday, November 20, 2012

बपौती

साफ़-साफ़ बात सुन लो जी
ये दुनिया
हम मर्दों की बपौती है
इसमें रहना है
तो रहना ही होगा
हमारी शर्तों पर।

हमने कई तरह से चाहा
तुम्हें कहना
लेकिन तुम हो
कि सुनती ही नहीं हो

हमने नियम बनाए
ताकि तुम समझ सको
अपनी सीमाएँ!

हमने बातें बनाईं
ताकि तुम डर सको
बदनामी से!

हमने प्रथाएँ बनाईं
ताकि तुम
व्यस्त रह सको
उनके निर्वाह में!

हमें अच्छी नहीं लगती
मर्दाना कामकाज में
तुम्हारी दखलंदाज़ी।

तुम हो ही क्या
पुरुष की
मजबूरी और कमज़ोरी के सिवाय!

बेचारा अभिमन्यु
मारा गया
सिर्फ़ तुम्हारे कारण
तुम्हें मालूम होना चाहिए था
कि औरत का काम है
जागते रहना
पुरुष की सुविधा के लिए।

महाभारत के
महाविनाश की वजह
तुम
तुम्हें जानना चाहिए था
कि औरत बनी ही भोग के लिए है
उसको पचा लेना चाहिए
बड़े से बड़ा अभिमान
अपने भीतर।

लंका जैसी नगरी के
रक्तरंजन का कारण तुम।
तुम्हें पता होना चाहिए था
कि औरत के लिए
सर्वथा अनुचित है
किसी लक्ष्मण द्वारा खींची
मर्यादा रेखा का उल्लंघन।

बड़ी विदुषि बनी फिरती हो
पहचान नहीं सकती थी
साधु के वेश में खड़े रावण को
और गौतम के वेश में खड़े इन्द्र को
...थोड़ा ढँक-ओढ़ के नहीं रह सकती
ज़रूरी है अपने सौंदर्य का ढिंढोरा पीटना
आग को देखेगा
तो घी तो पिघलेगा ही
फिर दोष मंढ़ोगी पुरुष के सिर
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

समझ लो साफ-साफ
ये दुनिया हमारी है
इसमें रहना है
तो हमारे मुताबिक़ रहो
वरना
तुम्हारे लिए
दुनिया में एंट्री बैन!

© चिराग़ जैन

Wednesday, November 14, 2012

बाज़ार की अफ़वाह और अफ़वाह का बाज़ार

दीवाली, दशहरा, रक्षाबंधन
ये सब हमारे लिए त्यौहार हैं
लेकिन कुछ लोगों के लिए सिर्फ व्यापार हैं

हर साल की तरह
इस साल भी दीवाली आई,
इस साल भी हुआ
लक्ष्मी जी का पूजन
आतिशबाज़ी और घरों की सफ़ाई,
लेकिन इस साल हमने मिठाई नहीं खाई।

बचपन में इतनी मिठाई आती थी
इतनी मिठाई आती थी
कि पेट अफ़र जाता था
रोटी तो माँ के डर से खानी पड़ती थी
वरना पेट तो मिठाई से ही भर जाता था।

खोये में मिलावट की बात को
ये टीवी चैनल कुछ ज़्यादा नहीं खेंच रहे हैं
मुझे तो लगता है
कि बेचारे खोए को बदनाम करके
ये अपनी चाॅकलेट बेच रहे हैं।

युगों-युगों से चले आ रहे त्यौहारों मे
ये अपनी राय क्यों झोंकते हैं
हमें हमारी ही परम्पराओं के पालन से रोकते हैं
बाज़ार की हवाएं कैसी कैसी बातें बनाती हैं
और तो और
डाॅक्टर कहता है
काजल लगाने से आंखें ख़राब हो जाती हैं।

पहले की माँए
दीवाली की रात
कच्ची पाली में काजल बनाती थी
पूरे साल बच्चों की आँखों में लगाती थी
काजल से आँख ख़राब होना तो दूर
चश्मे का नम्बर तक नहीं बढ़ा
ये काजल का ही करिश्मा था
कि लालटेन की रौशनी में पढ़कर
कलाम साहब राष्ट्रपति बन गए
लेकिन कभी चश्मा नहीं लगाना पड़ा

और अगर काजल लगाने से
इतना ही अधिक होता है आंखों का नुकसान
तो फिर आई लाइनर
और आई पैन्सिल पर
आप मौन क्यों हैं श्रीमान्!

लोभ की आरी में बाज़ार का हत्था लगाकर
आप काट नहीं पाएंगे
हमारी संस्कृति की शाखें
अरे हमारे तो सौंदर्य का प्रतिमान है
रतनारे नैन और कजरारी आँखें!

हमारे यहाँ
प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम था
किसी का भी गेट खटखटाकर
पानी मांग लेना इस देश में आम था
फिर आया एक ख़ास किस्म की ख़बरों का दौर
पानी पीने के बहाने माल साफ कर गए चोर
पानी पीने के बहाने लूट लिया
पानी पीने के बहाने मार दिया
पानी, प्यास और लूट का ऐसा मचा शोर
प्यासों की दहशत के चर्चे हो गए हर ओर
जैसे ही पानी मांगने वालों पर
लोगों ने नज़रें तरेरी
फौरन मार्किट में लांच हो गई
एक-एक लीटर की बिस्लेरी

कृष्ण के देश में
जहां दूध नदियों में बहा
वहाँ एक न्यूज़ चैनल ने कहा
कि आपके घर में आने वाला दूध
ज़हर हो सकता है
बताइए जनाब क्या इससे भी अधिक
कोई कहर हो सकता है

आप साबुन के विज्ञापन में
माॅडल को दूध से नहाते दिखाते हो
अगर सारा ही दूध ज़हर है
तो आप साबुन के लिए
शुद्ध दूध कहाँ से लाते हो?

इन हालों आने वाली पीढ़ियों को
कृष्ण की कथा कैसे सुनाई जाएगी
क्या शुद्ध दूध का स्वाद चखने के लिए
बच्चों को साबुन खिलाई जाएगी।

पत्ता गोभी में एक कीड़ा पाया जाता है
जिसके कारण ब्रेन में होल होता है
काजू में कोलेस्ट्रोल होता है
दातुन करने से कमज़ोर होते हैं दाँत
मिठाई खाने से ख़राब होती हैं आँत
देशी घी से फेल हो सकता है हार्ट
इन्हीं बातों के दम पर तो चल रहे हैं
बड़े बड़े वाॅलमार्ट

यदि वो हमारी सुराही को ख़राब नहीं बताते
तो अपना वाटर कूलर कैसे बेच पाते
यदि इंडियन आदमी यूँ ही दीवाना रहता
आम और नीबू के अचार का
तो भट्टा ही बैठ जाता
जैम और जैली के व्यापार का
पाँच रुपए प्लेट के छोले कुल्चे से
यदि हमें नहीं डराया जाता
तो उनका डेढ़ सौ रुपए का पिज़्जा कौन खाने जाता

एक्चुअली हमारी जिस-जिस परंपरा में बाज़ार है
वो-वो परंपरा उन्हें स्वीकार है
और जिसमें संस्कृति की गंध है
मुहब्बत का घोंसला है
वो-वो उनके लिए ढकोसला है

इंडियन पब्लिक
पूरी दुनिया के व्यापारियों की एकमात्र होप है
इंडिया में मार्किट का बहुत बड़ा स्कोप है
इस स्कोप को ढूंढते हुए
जब कालीकट की बंदरगाह पर
तुमने उतारे थे काॅफी के जहाज
तब हमने तो नहीं किया था ऐतराज

आपका तो ये स्टाइल रहा है जनाब
पहले मुफ्त बाँट-बाँट के लगाते हो चाव
और फिर बढ़ा देते हो भाव

हम सदियों से
झाड़-फूस और जड़ी-बूटियों में
ढूंढते रहे हैं इलाज
लेकिन एलोपैथी ने सब कुछ बदल डाला है आज
ज़रा सा पेन हुआ नहीं
कि तुरंत कैप्सूल खाएंगी
एंटी बायोटिक और पेनकिलर पर
ज़िंदा रहने वाली बेटियाँ
प्रसव का दर्द सहना कैसे सीख पाएंगी

जब कोई काॅलेज का लड़का
इंडियन कल्चर को वेस्टर्न विकास से
कम तोल रहा होता है
तो उस समय वो नहीं बोलता
उसके पेट में पड़ा
बर्गर बोल रहा होता है

अब तो हमारे रहन-सहन पर
असर करने लगा है
लालच का कारोबार
हमें दो पल ठहर कर करना होगा विचार
आख़िर क्यों विदेशी कैक्टसों ने उखाड़ फेंके हैं
आंगन में लगे तुलसी और नीम
ये हमें निर्धारित करना होगा
कि हमें अपने बच्चों को
अंडरटेकर बनाना है
या महाबली भीम

नई पीढ़ी को जकड़ रहा
मानसिक ग़ुलामी का संकट
यूँ ही नहीं टलेगा
इसे भगाना भी होगा
केवल भारतीय गौरव
की बातें करने से काम नहीं चलेगा
भारतीय परंपरा को अपनाना भी होगा

© चिराग़ जैन