Tuesday, April 22, 2014

चाचा-भतीजा और कवि-सम्मेलन

चाचाजी को भतीजों का दस्ता चहिये था नया
अपना अरुण जैमिनी भी इंटरव्यू देने गया

इंटरव्यू में पूछा गया सिर्फ एक सवाल
अरुण ने बना दिया सवाल का बबाल
सवाल था-
"अरुण, यदि तुम लालकिला कवि सम्मेलन में बुलाए जाओगे,
तो कौन सी कविता सुनाओगे?" 

अरुण बोला - "चाआजी, 
आजकल लालकिले पर कविता सुनाता कौन है,
और जो कविता सुनाए,
उसे लालकिले पर बुलाता कौन है?"

चाआजी को जवाब में मज़ा आया
उन्होंने सवाल आगे बढ़ाया -
"अच्छा अगर किसी गोष्ठी में बुलाए जाओगे तो?"

अरुण बोला- ”गोष्ठी की बात छोड़ दो!
गोष्ठी से आप मेरी प्रतिभा का 
अंदाज़ा नहीं लगा पाओगे
क्योंकि आप ठहरे बड़े कवि
कविता के लिए गोष्ठी में थोड़े ही आओगे।
और यदि गोष्ठी में ही जाना पड़े
कविता सुनाने के लिए
तो आपको क्या चाचाजी बनाया है
ऐसी-तैसी कराने के लिए"

अच्छा व्हाट्सएप ग्रुप में जाओगे तो?
व्हाट्सएप ग्रुप का नाम सुनकर
अरुण सीरियस हो गया थोड़ा
बोला- "अजी साहब, आप लोगों ने ग्रुप को
कविता सुनाने लायक ही कहाँ छोड़ा।
ग्रुप तो कविता पर ताली बजाता है
सुनके तो कहीं बाहर से आता है।"

"अरुण तुम्हारे पिताजी भी तो कविता सुनाते हैं"
"जी वो अब केवल अध्यक्ष बनाए जाते हैं।"

तुम्हारा कोई दोस्त है कवि
जी है, महेन्द्र अजनबी
वो कविता सुनाता है
हाँ कोई सुने तो सुना आता है

चाचाजी, आपने भी इस सवाल को खूब धकेला है
लगता है इस बार आपके हाथ में नौचन्दी मेला है

पर कुछ भी हो अब अपना जवाब ले लो
महेन्द्र अजनबी मंच पर जाएगा
और कविता सुनाकर बैठ जाएगा
पर कविता कैसी
अब ये संयोजक की मर्ज़ी, वो कहे जैसी

"अरुण तुमने तो ज़रा-सी बात का बना दिया बबाल"
अरुण बोला, "मुझे तो शुरू से ही पसंद नहीं है ये सवाल
मेरे विचार में आज मंच पर जितनी भी गड़बड़ है
ये कविता ही उसकी जड़ है
अगर उस दिन वाल्मीकि वो एक कविता न सुनाते
तो न मानस लिखी जाती, न राम वन जाते
न लतीफ़े होते न मंच
न लिफाफे होते न प्रपंच

इंटरव्यू का ये हुआ परिणाम
कि आजकल अरुण जैमिनी
हर कार्यक्रम की टीम बनाते हैं
खुद सञ्चालन करते हैं
और चाचाजी सेअध्यक्षता करवाते हैं

© चिराग़ जैन