Sunday, September 20, 2015

व्यक्तित्व

एक अज्ञात कलाकार ने
हवा में कुछ लकीरें बनायीं

कुछ खड़ी रेखाएँ
जैसे भृकुटि के मध्य त्यौरियाँ पड़ती हैं
कुछ आड़ी रेखाएँ
जैसे ललाट पर बौद्धिकता उभरती है।
कुछ अर्द्धवृत्ताकार
जैसे नयनों के नीचे की चिन्ताएँ
कुछ हल्की पनियाई
जैसे आँखों की कोरों पर तैरती इच्छाएँ

कुछ होंठों पर बिखरी मुस्कानों की
सुखद यादों जैसी
और कुछ कसमसाते हुए
पूरे न हो सके वादों जैसी।

कुछ ख़ुशियों की
कुछ ग़म की
कुछ आशाओं के उजियारे की
कुछ निराशाओं के तम की
कुछ अप्राप्य के प्रति रोष की
और कुछ असीम संतोष की

...इन आड़ी-तिरछी रेखाओं में 
जाने कब एक व्यक्तित्व उभर आया
मैं रेखाएँ देखता रह गया
और हवा में मेरा चेहरा उकर आया!

© चिराग़ जैन

Thursday, September 10, 2015

संवाद कविता

आगे के सफ़हों पर जो कुछ है वह भी है तो गोमुख निसृत गंगाजल ही, लेकिन इसका संचय जिस पात्र में किया गया है वह किंचित आधुनिक है। यह खण्ड फेसबुक पर हुई चर्चाओं का यथावत् संकलन है। इसमें मित्रों से हुई काव्यात्मक चैटिंग को जस का तस समायोजित किया गया है। इस खण्ड में केवल उन्हीं अंशों का सृजन-श्रेय मेरा है, जो मेरे नाम/चित्र के साथ प्रकाशित हैं। अन्य अंशों के सर्जकों को अपने नाम उजागर करने में संकोच था, सो फिलहाल उनको ‘अज्ञात’ जानकर ही आनंद लें।

© चिराग़ जैन