याद ने इक रेशमी-सा जाल फिर फैला लिया है
मन ज़रूरी काम सारे छोड़कर है गुम
याद फिर से आ रही हो तुम
त्यौरियां चिन्ताओं का बोझा सम्भाले फिर रही हैं
चेतना बरसों पुराने हर्ष में उलझी हुई है
हाथ में तो ढेर सारे काम हैं आधे-अधूरे
उंगलियाँ केवल तुम्हारे स्पर्श में उलझी हुई हैं
याद के उस छोर पर बाँहें पसारे तुम खड़ी हो
सज रही तुम पर वही कुमकुम
याद फिर से आ रही हो तुम
फिर तुम्हारी देह का मकरंद मन में घुल रहा है
आह, मेरे ओंठ आपस में अचानक गुंथ गए हैं
साँस बढ़-चढ़कर स्वयं सिसकारियाँ बनने लगी हैं
नैन फिर आनन्द की हद तक पहुँच कर मुंद गए हैं
कान में एहसास का संगीत गूंजे जा रहा है
सज उठी फिर याद की अंजुम
याद फिर से आ रही हो तुम
✍️ चिराग़ जैन