Thursday, June 29, 2023

आँख भर आई

रास्ता दूभर बहुत था
हारने का डर बहुत था
राह की धरती नहीं थी
चाह का अम्बर बहुत था
जूझने में व्यस्त थे, सुबकी नहीं आई
जीतने पर आँख भर आई

ज़िन्दगी की नाव की पतवार का एहसास भी था
साथ ही इस अनकहे से प्यार का आभास भी था
यूँ समझ लो, द्वार पर शिशुपाल भी था, कंस भी था
और मन के कुंजवन में अनवरत इक रास भी था
और उस पर रीतियों का बोझ हरजाई
जीतने पर आँख भर आई

देह के संवाद पर सब दोस्त-यारों की नज़र थी
और मन के हाल पर बस चांद-तारों की नज़र थी
हम निरंतर शुष्क होती कोंपलों से काँपते थे
पर हमारी डालियों पर भी बहारों की नज़र थी
एक दिन ख़ुद ही समूची डाल हरियाई
जीतने पर आँख भर आई

एक दिन पाया बिवाई में महावर भर गया है

एक दिन देखा हर इक निःशब्द में स्वर भर गया है
पीस की हर टीस सहकर अब हथेली रच उठी है
और इक सौभाग्य का क्षण मांग आकर भर गया है
हर पुरानी याद मुस्काई
जीतने पर आँख भर आई