इस धरती का अभिनंदन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन
जननी-तनय सरीखे ही हैं, आवश्यकता-आविष्कार
अनुभव का अवलंबन थामे बढ़ता अधुनातन आचार
भौतिकता के चक्र, कल्पना-अश्व, साधना का स्यंदन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन
ज्ञान वही, जो मानवता हित सज्जन का निर्माण करे
शोध वही, जो जन-जन के हित सुविधा अनुसंधान करे
शिक्षा वह, जिससे बन पाये, सरल, सुगम, सुंदर जीवन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन
अर्जित कर, संरक्षित करना और प्रसारित करना ज्ञान
यही स्वप्न है, यही सोच है, यही हमारा लक्ष्य प्रधान
ऊर्जा के मस्तक पर चंदन तिलक लगाता अनुशासन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन
अलख तरंगों को लिखते हैं, अकथ स्वरों को सुनते हैं
प्राणहीन यंत्रों को समझें, हर स्पन्दन को गुनते हैं
एक साथ साधे हैं हमने जड़, चेतन और अवचेतन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन
उद्यमस्य सम किमपि न भवति, कर-कर इसी मंत्र का ध्यान
सुकर बनाकर सुगम सूचना, स्वप्न लिए जग का कल्याण
अभिनव शिक्षा, अभिनव जीवन, अभिनव दर्शन, अभिनव मन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन
संस्कृति की समृद्धि हमारी पृष्ठभूमि का तत्व प्रधान
मानव निर्मित बुद्धि, प्राकृतिक भाषा का करते संधान
आगत का स्वागत करते हैं और अतीत का आराधन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन
विश्वामित्री के तट पर वट की नगरी है सुन्दरतम
शिक्षा के नित-नूतन-नय को करती है यह हृदयंगम
संस्कृति और विज्ञान यहाँ करते दिखते हैं आलिंगन
इस परिसर से ज्ञान प्रसारित
इसके कण-कण का वंदन