Sunday, September 8, 2002

कल की छोड़ो, कल का क्या है

ऐसा मत सोचो कि जब सब सोचेंगे तब सोचेंगे
पहले हम सोचेंगे तब ही तो इक दिन सब सोचेंगे

आख़िर बंदूकों से ही जब सारे काम निकलने हैं
आयत रटने से क्या हासिल अहले-मक़तब सोचेंगे

दो और दो को पाँच बनाने की तरक़ीबें क्या होंगीं
इस उलझन का हल कुर्सी पर बैठे साहब सोचेंगे

आज जिन्हें मीठी लगती हैं, मेरी कड़वी बातें भी
कल वो मीठी बातों के भी कड़वे मतलब सोचेंगे

कल की चिन्ताओं पर अपना आज निछावर क्या करना
कल की छोड़ो, कल का क्या है, आएगा तब सोचेंगे 

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment