है तमन्ना यही प्यार जीता रहे
सबका जीवन गुनाहों से रीता रहे
भावना सब के दिल में यही जन्म ले
दुख मैं पीता रहूँ सुख तू पीता रहे
✍️ चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Monday, October 28, 2002
Friday, October 11, 2002
मन में श्रद्धा हो तो
प्रेमी को प्रेमी का होना भर ही काफ़ी होता है
मन में श्रद्धा हो तो इक पत्थर ही काफ़ी होता है
ग़ैरों के संग रहना महलों में भी रास न आएगा
अपनापन मिल जाए तो कच्चा घर ही काफ़ी होता है
✍️ चिराग़ जैन
मन में श्रद्धा हो तो इक पत्थर ही काफ़ी होता है
ग़ैरों के संग रहना महलों में भी रास न आएगा
अपनापन मिल जाए तो कच्चा घर ही काफ़ी होता है
✍️ चिराग़ जैन
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