Friday, May 28, 2004

कोई गीत नहीं लिखा

तुम रूठी तो मैंने रोकर, कोई गीत नहीं लिखा
इस ग़म में दीवाना होकर, कोई गीत नहीं लिखा
तुम जब तक थीं साथ तभी तक नज़्में-ग़ज़लें ख़ूब कहीं
लेकिन साथ तुम्हारा खोकर कोई गीत नहीं लिखा

प्यार भरे लम्हों की इक पल याद नहीं दिल से जाती
मन भर-भर आता है फिर भी साँस नहीं रुकने पाती
उखड़ा-उखड़ा रहता हूँ पर जीवन चलता रहता है
शायद मैंने खण्डित की है प्रेमनगर की परिपाटी
इस पीड़ा में नयन भिगोकर कोई गीत नहीं लिखा

रोज़ सजानी थी नग़्मों में प्रेम-वफ़ा की परिभाषा
और जतानी थी फिर से मिलने की अंतिम अभिलाषा
प्रश्न उठाने थे तुम पर या ख़ुद को दोषी कहना था
या फिर ईश्वर के आगे रखनी थी कोई जिज्ञासा
मैंने अब तक आख़िर क्योंकर कोई गीत नहीं लिखा

संबंधों की पीड़ा भी है, भीतर का खालीपन भी
मुझसे घण्टों बतियाता रहता है मेरा दरपन भी
हर पल भाव घुमड़ते रहते हैं मेरे मन के भीतर
नम पलकों से हो ही जाता है आँसू का तर्पण भी
इतना सब सामान संजोकर कोई गीत नहीं लिखा

सारी दुनिया को कैसे बतलाऊंगा अपनी बातें
आकर्षण, अपनत्व, समर्पण या पीड़ा की बरसातें
जिन बातों को हम-तुम बस आँखों-आँखों में करते थे
क्या शब्दों में बंध पाएंगी वो भावों की सौगातें
इन प्रश्नों से आहत होकर कोई गीत नहीं लिखा


© चिराग़ जैन

Thursday, May 27, 2004

तू भी सब-सा निकला

जो जितना भी सच्चा निकला
वो उतना ही तनहा निकला

सुख के छोटे-से क़तरे में
ग़म का पूरा दरिया निकला

कुछ के वरक़ ज़रा महंगे थे
माल सभी का हल्का निकला

मैंने तुझको ख़ुद-सा समझा
लेकिन तू भी सब-सा निकला

कौन यहाँ कह पाया सब कुछ
कम ही निकला जितना निकला

© चिराग़ जैन

Sunday, May 2, 2004

हमने देखे हैं कई साथ निभाने वाले

हमने देखे हैं कई साथ निभाने वाले
बरगला लेंगे तुझे भी ये ज़माने वाले

बारिशों में ये नदी कैसा कहर ढाती है
ये बताएंगे तुझे इसके मुहाने वाले

धूप जिस पल मिरे आंगन में उतर आएगी
और जल जाएंगे दीवार उठाने वाले

मौत ने ईसा को शोहरत की बुलंदी बख्शी
ख़ाक़ में मिल गए सूली पे चढ़ाने वाले

रास्ते सच के बहुत तंग, बहुत मुश्क़िल हैं
सोच ले ये भी ज़रा जोश में आने वाले

अपनी ऑंखों को भी सिखला ले हुनर धोखे का
झूठी बातों से हक़ीक़त को छिपाने वाले

© चिराग़ जैन