कुछ ज़र्द से पत्ते थे जो सज कर सँवर गए
कुछ फूल जंगलों में ही खिल कर बिखर गए
कुछ छाछ की छछिया लिए दुनिया पे छा गए
कुछ खीर हाथ में लिए घुट-घुट के मर गए
✍️ चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Thursday, November 11, 2004
वनफूल
अनर्गल
चाहता था भावनाओं में जकड़ लूँ आपको
आप आगे बढ़ चुके, कैसे पकड़ लूँ आपको
लेकिन निर्णय के पथ पर अनुरोध अनर्गल लगता है
जीवन की नदिया के मग में अवरोध अनर्गल लगता है
मेरे मन की पीड़ा, मन में ही घुट कर रह जाएगी
अरमानों की डोली राहों में लुट कर रह जाएगी
मैं यादों के ताजमहल में शासक बन कर रह लूंगा
स्मृतियाँ दिल में उफ़नीं तो आँसू बन कर बह लूंगा
तुम बिन मुझको जीवन का हर मोद अनर्गल लगता है
तुम भी कभी-कभी यादों की गलियों में खो जाओगे
मन के आंगन में यादों की फुलवारी बो जाओगे
मेरा मन भी बीते कल में लौट-लौट कर आएगा
और आँचल उड़-उड़ कर तुमको मेरी याद दिलाएगा
प्रेममग्न उन्मुक्त हृदय को बोध अनर्गल लगता है
मैं भी हूँ लाचार, तुम्हारी भी अपने मज़बूरी है
क्योंकि इस भौतिक दुनिया में, पूंजी बहुत ज़रूरी है
लेकिन इस दौलत के मद में नेह धनधनी मत खोना
सौम्य सुकोमल अंतस् और हँसने की आदत मत खोना
जीवन नीरस हो तो फिर हर शोध अनर्गल लगता है
✍️ चिराग़ जैन
आप आगे बढ़ चुके, कैसे पकड़ लूँ आपको
लेकिन निर्णय के पथ पर अनुरोध अनर्गल लगता है
जीवन की नदिया के मग में अवरोध अनर्गल लगता है
मेरे मन की पीड़ा, मन में ही घुट कर रह जाएगी
अरमानों की डोली राहों में लुट कर रह जाएगी
मैं यादों के ताजमहल में शासक बन कर रह लूंगा
स्मृतियाँ दिल में उफ़नीं तो आँसू बन कर बह लूंगा
तुम बिन मुझको जीवन का हर मोद अनर्गल लगता है
तुम भी कभी-कभी यादों की गलियों में खो जाओगे
मन के आंगन में यादों की फुलवारी बो जाओगे
मेरा मन भी बीते कल में लौट-लौट कर आएगा
और आँचल उड़-उड़ कर तुमको मेरी याद दिलाएगा
प्रेममग्न उन्मुक्त हृदय को बोध अनर्गल लगता है
मैं भी हूँ लाचार, तुम्हारी भी अपने मज़बूरी है
क्योंकि इस भौतिक दुनिया में, पूंजी बहुत ज़रूरी है
लेकिन इस दौलत के मद में नेह धनधनी मत खोना
सौम्य सुकोमल अंतस् और हँसने की आदत मत खोना
जीवन नीरस हो तो फिर हर शोध अनर्गल लगता है
✍️ चिराग़ जैन
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