गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Thursday, November 11, 2004
वनफूल
कुछ ज़र्द से पत्ते थे जो सज कर सँवर गए कुछ फूल जंगलों में ही खिल कर बिखर गए कुछ छाछ की छछिया लिए दुनिया पे छा गए कुछ खीर हाथ में लिए घुट-घुट के मर गए
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