Wednesday, February 16, 2005

संतोष

सिर्फ़ मकरन्द बन के जी लेंगे
हम तेरी गन्ध बन के जी लेंगे?
ज़िन्दगी चाक़ हो गई तो क्या
हम भी पैबन्द बन के जी लेंगे

© चिराग़ जैन

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