Wednesday, May 25, 2005

क़हक़हे

बिल्कुल ख़ाली कर दिया है मैंने
दिल का भरा-पूरा मकान
आँखों की बाल्टी में
आँसुओं का पानी भरकर
धो डाला है
मकान का एक-एक कोना
...काफ़ी दिन हुए।

लेकिन अब भी गूंजते हैं
यादों के क़हक़हे
टकराकर
ख़ाली मकान की ख़ामोश दीवारों से।
और मैं
फिर से धोने लगता हूँ
दिल के मकान की
उदास दीवारें!

✍️ चिराग़ जैन

Thursday, May 12, 2005

जीवन दर्शन

मुझे गुलमोहरों के संग झरना आ गया होता
किसी छोटे से तिनके पर उबरना आ गया होता
तो मरते वक़्त मेरी आंख में आँसू नहीं होते
कि जीना आ गया होता तो मरना आ गया होता

✍️ चिराग़ जैन

Sunday, May 8, 2005

माँ

माँ मैं तुझको क्या लिखूँ, सब तुझसे साकार
जब-जब तू आशीष दे, तब-तब हो त्योहार

✍️ चिराग़ जैन

Tuesday, May 3, 2005

प्रेम-तीर्थ

मुम्बई में जुहू-चौपाटी पे शाम सात बजे
बाद; परिवार संग नहीं जाना चाहिए
आगरे में बालकों को ताज और प्रेमिका को
पालिवाल गार्डन में घुमाना चाहिए
बैंगलोर वाले लाल बाग़ जैसा कोई एक
प्रेमियों को देश भर में ठिकाना चाहिए
जहाँ पहले हैं, वहाँ और सुविधाएँ मिलें
जहाँ पे नहीं हैं वहाँ बन जाना चाहिए

आशिक़ों को आशिक़ी में डूबने के लिए
जोधपुर वाला एक लेक कायलाना चाहिए
सांझ वाला सत्संग करने के लिए
हर शहर में एक तीरथ बनाना चाहिए
ऐसे लोकप्रिय तीरथों के निर्माण हेतु
सरकार को भी अब आगे आना चाहिए
मानव प्रजाति वाले तोते-तोतियों के लिए
भी तो कोई बर्ड सेंचुरी बनाना चाहिए

✍️ चिराग़ जैन