गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Sunday, October 30, 2005
मीडिया : एक चेहरा ये भी
चिराग़ जैन
हमारे मुल्क़ की क़िस्मत में ये विस्फोट क्यूँकर था शहर से गाँव तक माहौल कल दमघोट क्यूँकर था पसीना चू रहा था सबकी पेशानी से पर फिर भी ख़बर पढ़ते हुए उनके बदन पर कोट क्यूँकर था
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