Friday, April 28, 2006

मन

कितना 
भयंकर पल है

...मन में
कहने को बहुत कुछ है
पर कुछ भी कहने का
मन नहीं है।

© चिराग़ जैन

Monday, April 24, 2006

कोई यूँ ही नहीं चुभता

कोई चीखा है तो उसने बड़ी तड़पन सही होगी
कोई यूँ ही नहीं चुभता कहीं टूटन रही होगी
किसी को सिर्फ़ पत्थर-दिल समझ कर छोड़ने वालो
टटोलो तो सही उस दिल में इक धड़कन रही होगी

© चिराग़ जैन

Sunday, April 16, 2006

गुनाह

सज़ाओं में मैं रियायत का तलबदार नहीं
क़ुसूरवार हूँ, कोई गुनाहगार नहीं
मैं जानता हूँ कि मेरा क़ुसूर कितना है
मुझे किसी के फ़ैसले का इन्तज़ार नहीं

© चिराग़ जैन

Saturday, April 1, 2006

बनिये

बुझा दें प्यास औरों की वो मिट्टी के घड़े बनिये
रहे अन्तस् में कोमलता भले बाहर कड़े बनिये
हमारा क़द हमारी भावनाओं से निखरता है
भले संख्या में कम हों हम मगर दिल के बड़े बनिये

नहीं ऐसा नहीं हम लोग केवल दान करते हैं
हक़ीक़त ये है हम प्रतिभाओं का सम्मान करते हैं
हमें भगवान बनने की कोई ख्वाहिश नहीं लेकिन
वो हर सत्कर्म करते हैं जो बस इन्सान करते हैं

जो दुनिया को फतह कर ले, वो बल-उत्साह हममें है
सभी के घर जले चूल्हा, ये इक परवाह हममें है
जो इक हारे हुए राणा को अपनी सम्पदा दे कर
पुनः लड़ने की हिम्मत दे, वो भामाशाह हममें है

© चिराग़ जैन