Saturday, July 29, 2006

पवनपुत्रियों की लंकायात्रा

कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है, लेकिन पिछले दिनों विद्वानों की इस चिर-परिचित सूक्ति को ताक पर रखकर, आध्यात्म ने स्वयं को दोहरा दिया। आध्यात्म की इस उद्दण्डता पर सारा साहित्य-जगत सकते में है।

हुआ यूं कि जम्बूद्वीपे भारतखण्डे दिल्लीनाम्निनगरे पीएमहाउसे (वाल्मिकी रामायण से साभार) दो पवनपुत्रियां संध्याकाल के अंतिम क्षणों में प्रधानमंत्री निवास में घुसकर उसी प्रकार ‘बिना कुछ बांका करवाए’ वापस निकल आईं ज्यांे त्रेता युग में पवनपुत्र हनुमान अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर सुरसा महामाई के मुख में प्रवेश कर ‘बाल बांका करवाए बगैर’ ससम्मान बाहर निकल आए थे।

बजरंग बली के इस करतब से प्रसन्न होकर सुरसा ने न केवल उनकी पीठ थपथपाई बल्कि उन्हें लंका जाने का शाॅर्टकट भी बताया। (स्थानाभाव के कारण मैं इस घटना को एक पंक्ति में निपटा रहा हूँ, लेकिन तुलसीदास जी ने हनुमान जी के सूक्ष्मरूप की विशाल पीठ की इस थपथपाहट को 10-12 चैपाइयों में अभिव्यक्त किया है।)

कलयुग वाली स्टोरी लाइन भी ठीक-ठाक चल रही थी। सौंदर्य के विमान पर सवार हो, आकाशीय चुंबन उछालतीं हुईं, पवनपुत्रियां सुरक्षा एजंसियों के जबड़े में घुसकर बिना किसी दांत या जीभ के स्पर्श हुए रेसकोर्स रोड पर उतर आई थीं। सुरक्षा एजंसियों के सामने धर्मसंकट था कि वे चुंबन संभालें या सुरक्षा। लेकिन ज्यों ही इस दुविधा को त्याग तुलसीदास जी के कथनानुसार सुरसा.... मेरा मतलब है सुरक्षा एजंसियां इस कौतुक से इम्प्रेस होने को तैयार हुईं तभी उनकी नज़र सागर के जल में पड़ रही ‘सत्यानाश खड्ग’ की परछाई पर पड़ी। मुड़कर देखा तो मीडियासुर हाथ में खड्ग थामे ‘कैमरा दृष्टि’ से पूरे घटनाक्रम पर पैनी नज़र गड़ाए खड़ा था।

यह मीडियासुर त्रेता-युग का वही परमवीर असुर कुम्भकर्ण है, जिसने उस युग में सो-सोकर अपनी नींद का कोटा पूरा कर लिया था। अब वह मीडिया के रूप में पैदा हुआ है और सबकी नींदें हराम करने पर तुला है। इसको ब्रह्मा जी ने ‘टी.आर.पी.अस्त्र’ और ‘स्टिंग चक्र’ वरदान में दिए थे, लेकिन इस दुष्ट ने इनको गलाकर इनकी धातु से ‘सत्यानाश खड्ग’ बना ली।

इस दैत्य के भय से बहुत से फिल्म अभिनेताओं-अभिनेत्रियांे, सुरक्षा कर्मियों, घूसप्रेमियों, रघुवंशियों, दुकानदारों, सेल्समैनों, प्रेमियों, सोर्सलैस अफसरों और ऋषि मुनियों को अनिद्रा का महारोग हो गया है। इस रोग से मुक्ति पाने के लिए ये सब दुखी जन ‘सतर्कता’ की टैबलेट खा रहे हैं और ‘भरोसे’ से परहेज कर रहे हैं। राजनीति को इस दैत्य से कोई भय नहीं है। उसने बचपन में ही कानून देवता की तपस्या करके ‘जुगाड़ास्त्र’ प्राप्त कर लिया था।

बहरहाल, इस असुर के आतंक से कलयुग की इस महान रामायण के उक्त एपिसोड की स्टोरी लाइन में काफी परिवर्तन करना पड़ा। इस बार सुरसा स्वयं पवनपुत्रियों को ब्रह्मपाश में बांधकर लाई और लंकेश के सामने पेश किया। उनके इस उपद्रव से कुपित होकर उनके धर्मपिता पवनदेव ने उनकी पवनवेग से उड़ने की शक्तियां छीन लीं। आजकल पवन पुत्रियां ‘बेसहारा’ हैं, लेकिन अपनी प्रतिभा और आधारभूत शक्तियों के दम पर वे लंकेश के चंगुल से निकल कर मीडियासुर के महल में आ पहुंचीं।

मीडियासुर के विनम्र अनुमोदन पर उन्होंने कुछ समय तक वहां रहना स्वीकार कर लिया है। अब वे ग्लैमर-महल की तमाम वाटिकाओं में घूम-फिर रहीं हैं। महाकवि तुलसीदास जी जीवित होते तो इस सिचुएशन पर लिखते-


पीएम के घर कार घुसाई।
निसदिन हर चैनल पर छाई।।
तुम उपकार मीडियाहिं कीन्हा।
कौतुक करके स्टोरी दीन्हा।।
दुर्गम काज ‘लश्कर’ के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम धनवान काहू को डर ना।।
पुलिस-वुलिस निकट नहीं आवै।
सोनाटा जब कार दिखावै।।
दाईं आंख से प्रेस रिझाई।
बाईं आंख से पुलिस छकाई।।
जो निसदिन तुम न्यूज़ दिखाई।
सो अच्छी टी.आर.पी.पाई।।


© चिराग़ जैन

Friday, July 14, 2006

बचपन

हँसी-ख़ुशी के वो लमहे हज़ार बचपन के
कभी तो लौटते दिन एक बार बचपन के

नहीं, दिमाग़ न थे होशियार बचपन के
तभी तो दिन थे बहुत ख़ुशगवार बचपन के

बड़े हुए तो बहुत लोग मिल गए लेकिन
बिछड़ चुके हैं सभी दोस्त-यार बचपन के

जो जिस्म को नहीं दिल को सुक़ून देते थे
बहुत अजीब थे वो रोज़गार बचपन के

लड़े जो सुब्ह तो फिर शाम साथ खेल लिए
कभी रहे नहीं मन में ग़ुबार बचपन के

सभी को चुपके से हर राज़ बता देते थे
सभी तो हो गए थे राज़दार बचपन के

ढले जो शाम तो गलियों में खेलने निकलें
बड़े हसीन थे वो इन्तज़ार बचपन के

बड़ों पे ज़िद रही, छोटों पे इक रुआब रहा
कहाँ बचे हैं वो अब इख़्तियार बचपन के

ज़ेह्न में कौंध के होठों पे बिखर जाते हैं
वो वाक़यात हैं जो बेशुमार बचपन के

© चिराग़ जैन