Thursday, August 17, 2006

मौन

भले ही कभी
बाँहों में भरकर
दुलारा न हो मुझे
आपके नेह ने!

...लेकिन फिर भी
न जाने क्यों

आपका मौन!

© चिराग़ जैन

No comments:

Post a Comment