Thursday, August 17, 2006

मौन

भले ही कभी
बाँहों में भरकर
दुलारा न हो मुझे
आपके नेह ने!

...लेकिन फिर भी
न जाने क्यों
काटने को दौड़ता है
आपका मौन!

✍️ चिराग़ जैन

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