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Friday, July 6, 2007
ऐब्स्ट्रेक्ट
किसी की याद के कुछ रंग यक-ब-यक बिखर जाते हैं ज़ेहन के कॅनवास पर।
और मैं ठहर कर निहारने लगता हूँ उस कलाकृति की ख़ूबसूरती को। बूझने लगता हूँ अतीत के स्ट्रोक्स की जटिल पहेलियाँ।
आज तक समझ नहीं पाया हूँ कि ये ऐब्स्ट्रेक्ट बना तो बना कैसे?
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