Tuesday, September 18, 2007

अंतर्मुखी

ख़ुशी की लाश उठती है ख़ुशी की चाह के नीचे
बहुत से ज़ख्म होते हैं ज़रा-सी आह के नीचे
हमारे दिल की बातें दिल में ऐसे दब के रहती हैं
कि जैसे पीर सोता हो कोई दरगाह के नीचे

© चिराग़ जैन