गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Tuesday, September 18, 2007
अंतर्मुखी
ख़ुशी की लाश उठती है ख़ुशी की चाह के नीचे बहुत से ज़ख्म होते हैं ज़रा-सी आह के नीचे हमारे दिल की बातें दिल में ऐसे दब के रहती हैं कि जैसे पीर सोता हो कोई दरगाह के नीचे
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