बहुत समझदार हो तुम!
जब कभी
उदासी का आँचल ओढ़कर
जवान होने लगता है
मेरा कोई दर्द
तो चुपचाप
बिना किसी शोर-शराबे के
कंधा देकर
…पहुँचा आते हो उसे
वहाँ
…जहाँ से लौट नहीं पाया कोई
आज तक!
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Wednesday, June 24, 2009
Tuesday, June 23, 2009
आपदा-प्रबंधन
संकट हो कोई समक्ष खड़ा
या फिर घिर आए युद्ध बड़ा
जीवन की हर कठिनाई से
मानव का पुत्र सदैव लड़ा
मानवता का इक दिव्य भाव, अंतस् में धारण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई, मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
सागर ने लांघी मर्यादा
सूनामी यम का रूप बनी
भूकम्पों की मनमानी से
जब धरा मृत्यु का कूप बनी
मानवता एक हुई सारी
विपदा उसके आगे हारी
सब मतभेदों का तिरस्कार, जीवन के कारण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई, मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
जब जीवनदायी मेघ फटें
अम्बर से मौत बरसती हो
नदियाँ सुरसा का रूप धरें
धरती किसान को ग्रसती हो
पर्वत से गिरे शिला भारी
शहरों को डसे महामारी
मानवता की रक्षा हित हम, हर स्वार्थ समर्पण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई, मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
जगती का कष्ट मिटाने को
शिव हालाहल पी जाते हैं
कान्हा गोकुल की रक्षा में
पर्वत का बोझ उठाते हैं
अस्थियाँ दान जहाँ ऋषि करें
और जनक खेत में कृषि करें
यदि समय त्याग का आया तो, हम याद कोई क्षण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
© चिराग़ जैन
या फिर घिर आए युद्ध बड़ा
जीवन की हर कठिनाई से
मानव का पुत्र सदैव लड़ा
मानवता का इक दिव्य भाव, अंतस् में धारण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई, मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
सागर ने लांघी मर्यादा
सूनामी यम का रूप बनी
भूकम्पों की मनमानी से
जब धरा मृत्यु का कूप बनी
मानवता एक हुई सारी
विपदा उसके आगे हारी
सब मतभेदों का तिरस्कार, जीवन के कारण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई, मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
जब जीवनदायी मेघ फटें
अम्बर से मौत बरसती हो
नदियाँ सुरसा का रूप धरें
धरती किसान को ग्रसती हो
पर्वत से गिरे शिला भारी
शहरों को डसे महामारी
मानवता की रक्षा हित हम, हर स्वार्थ समर्पण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई, मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
जगती का कष्ट मिटाने को
शिव हालाहल पी जाते हैं
कान्हा गोकुल की रक्षा में
पर्वत का बोझ उठाते हैं
अस्थियाँ दान जहाँ ऋषि करें
और जनक खेत में कृषि करें
यदि समय त्याग का आया तो, हम याद कोई क्षण कर लेंगे
आपदा अगर कोई आई मिल-जुल के निवारण कर लेंगे
© चिराग़ जैन
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