Sunday, May 30, 2010

दिल टूट गया

आस का दामन छूट गया
लगा मुक़द्दर फूट गया
फिर से पलकें भीग गईं
लो फिर से दिल टूट गया

पहले भी कई बार हुआ
मन में ग़ज़ब ख़ुमार हुआ
नैनों में सपने उभरे
और ये दिल लाचार हुआ
अब फिर वही कहानी है
हालत वही पुरानी है
अमृत पीना चाहा तो
भीतर कड़वा घूंट गया

प्यार हुआ तो पीर मिली
सबको ये तक़दीर मिली
कब लैला को क़ैस मिला
कब रांझे को हीर मिली
सबका ये अफ़साना है
क़िस्सा वही पुराना है
कहीं ज़माने की ज़िद थी
किसी से दिलबर रूठ गया

जीवन एक कहानी है
दुनिया आनी-जानी है
फिर भी गर दिल रोए तो
ये इसकी नादानी है
नादानी क्यों करता है
क्यों सपनों पर मरता है
जीवन भर का सच बाक़ी
पल दो पल का झूठ गया

© चिराग़ जैन

Thursday, May 20, 2010

सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम्

प्रेम में प्राप्ति की जब चली बात तो
पीर सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् हो गई
दर्द सहने की ताक़त बची है मगर
दर्द कहने की ख़्वाहिश ख़तम हो गई

वेदना प्राण में कुलबुलाती रही
देह व्यापार में ही फँसी रह गई
एक लावा रगों में पिघलता रहा
होंठ पर शेष सूखी हँसी रह गई
भीड़ में बेसबब मुस्कुराना पड़ा
जब अकेला हुआ आँख नम हो गई

कब सफलता का पूरा भरोसा रहा
कब विफलता की मन में हताशा रही
नींद जब भी नदारद हुई आँख से
मूल कारण महज एक आशा रही
दीप के प्राण पल-पल सुलगते रहे
हर घड़ी एक उम्मीद कम हो गई

© चिराग़ जैन

Friday, May 14, 2010

अब तो ख़ुश हो!

जिस सपने से डर लगता था
उसको ही साकार कर लिया
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

मैं कहता हूँ- ‘तुम चाहो तो अब भी परिवर्तन संभव है
स्थितियों का अपने हित में फिर से संयोजन संभव है’
तुम कहती हो- ‘छोड़ो भी अब, सारा सोच-विचार कर लिया’
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

तुम कहती हो- ‘इतना समझो, ऐसा ही ये जीवन मग है
अपना साथ यहीं तक का था, आगे अपनी राह अलग है’
इतनी आसानी से तुमने जब ख़ुद को तैयार कर लिया
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

‘अपना क़िस्सा ख़ास नहीं है, ऐसा तो सौ बार हुआ है
जब संवेदी मन पर हालातों का निष्ठुर वार हुआ है’
आज तुम्हारी इन बातों का मन ही मन सत्कार कर लिया
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

करता हूँ मनुहार अगर मैं तो तुम झुंझलाने लगती हो
स्वर ऊँचा करके मन की सच्चाई झुठलाने लगती हो
ज्ञात मुझे है, तुमने ऐसा क्यों अपना व्यवहार कर लिया
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

तुम पर मैं अधिकार जताऊँ, ऐसे तो हालात नहीं हैं
मेरे गीतों में तुम उतरो, अब ये अच्छी बात नहीं है
मन के अहसासों का मैंने, सीमित अब संसार कर लिया
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

‘व्यवहारिकता की चैखट पर, भावुक होने से क्या होगा
दिल में पीर भरी है लेकिन, नयन भिगोने से क्या होगा’
-इन कड़वे तर्कों को मैंने जीवन का आधार कर लिया
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

वैसे तुम व्यवहारिक हो तो आँखों में गीलापन क्यों है
मेरे दुख को देख तुम्हारे मन में इतनी तड़पन क्यों है
अब तक सच के साथी थे, अब पर्दा भी इकसार कर लिया
लो मैंने स्वीकार कर लिया
अब तो ख़ुश हो...!

© चिराग़ जैन