Thursday, May 20, 2010

सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम्

प्रेम में प्राप्ति की जब चली बात तो
पीर सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् हो गई
दर्द सहने की ताक़त बची है मगर
दर्द कहने की ख़्वाहिश ख़तम हो गई

वेदना प्राण में कुलबुलाती रही
देह व्यापार में ही फँसी रह गई
एक लावा रगों में पिघलता रहा
होंठ पर शेष सूखी हँसी रह गई
भीड़ में बेसबब मुस्कुराना पड़ा
जब अकेला हुआ आँख नम हो गई

कब सफलता का पूरा भरोसा रहा
कब विफलता की मन में हताशा रही
नींद जब भी नदारद हुई आँख से
मूल कारण महज एक आशा रही
दीप के प्राण पल-पल सुलगते रहे
हर घड़ी एक उम्मीद कम हो गई

© चिराग़ जैन

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