Monday, November 1, 2010

अनुचर

क़लम भी
कुछ कम नहीं है
कुदाल से।

...शायद
कुछ गहरी ही
चोट करती हो।

और यथार्थ
...यथार्थ तो
दास मात्र है
विचार का।

अनुचर है बेचारा
हाथ बांधे चलता है
विचार के पीछे-पीछे।

हिम्मत नहीं 
कि एक क़दम भी
आगे निकल जाए!

...अवलम्बन चाहिए ससुरे को
विचार का।

© चिराग़ जैन

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