Friday, August 12, 2011

झूठ के दम पे मुहब्बत

सच के कारण मिली नफ़रत क़ुबूल है लेकिन
झूठ के दम पे मुहब्बत नहीं अच्छी लगती

यूँ तो रिश्ते मेरे दिल को सुक़ून देते हैं
पर ये रिश्तों की सियासत नहीं अच्छी लगती

भूख जिस वक़्त कलेजा गलाने लगती है
तब ख़ुदाओं की इबादत नहीं अच्छी लगती

उनको कल तक मेरा क़िरदार बहुत भाता था
अब मेरी एक भी आदत नहीं अच्छी लगती

कैसे इस दौर के बच्चों को दुआ दे कोई
इनको पुरख़ों की नसीहत नहीं अच्छी लगती

काम जिस शख़्स का चलता हो बेइमानी से
उसको दुनिया में शराफ़त नहीं अच्छी लगती

क़ायदा जिसने मुहब्बत का पढ़ लिया हो चिराग़
उनको फिर कोई शरीयत नहीं अच्छी लगती

© चिराग़ जैन

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