जब कोई शख़्स
कोशिश करता है
सूरज से
आँख मिलाने की
तो केवल
आँखें ही नहीं चुंधियाती
त्यौरियाँ भी
पड़ जाती हैं
माथे पर!
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Wednesday, June 20, 2012
Saturday, June 9, 2012
करीने की बात
मरने की बात हो चुकी जीने की बात कर
गाली-गलौज छोड़, करीने की बात कर
सीने के नाप से ये सियासत न चलेगी
अब आम आदमी के पसीने की बात कर
✍️ चिराग़ जैन
गाली-गलौज छोड़, करीने की बात कर
सीने के नाप से ये सियासत न चलेगी
अब आम आदमी के पसीने की बात कर
✍️ चिराग़ जैन
Friday, June 8, 2012
प्रमाण
इससे पहले कि लोग तुम्हें कंधा दें,
…तुम उनको अपने जीवित होने का प्रमाण दे दो।
- चिराग़ जैन
…तुम उनको अपने जीवित होने का प्रमाण दे दो।
- चिराग़ जैन
Sunday, June 3, 2012
हम विकसित हुए
आज़ादी से पहले
इस देश में पर्दा प्रथा थी
फिर कुछ लोगों ने आन्दोलन चलाए,
फिर कुछ लोगों ने आन्दोलन चलाए,
हम विकसित हुए
...पर्दे ग़ायब हो गए।
...पर्दे ग़ायब हो गए।
फिर देश आज़ाद हुआ,
हम और विकसित हुए
स्लीवलेस का ज़माना आ गया।
स्लीवलेस का ज़माना आ गया।
फिर बड़े-बड़े शहर बसे,
हम और विकसित हुए
लडकियों ने दुपट्टे लेने बंद कर दिए।
आज मॉल कल्चर में देखता हूँ
एक चोगा सा पहनती हैं,
लडकियों ने दुपट्टे लेने बंद कर दिए।
आज मॉल कल्चर में देखता हूँ
एक चोगा सा पहनती हैं,
नीचे से सलवारें ग़ायब।
इस पूरे आकलन पर
इस पूरे आकलन पर
एक टिपण्णी करना चाहता हूँ-
"ग़रीबी
"ग़रीबी
आदमी के कपड़े उतरवा लेती है,
और अमीरी औरतों के।"
-चिराग़ जैन
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