Saturday, October 26, 2013

सरकार चल रही है

जो ख़ास हैं उन्हीं की अब दाल गल रही है
और आम आदमी की टोपी उछल रही है
सब चोर हैं सदन में- अख़बार बोलता है
फिर भी ग़ज़ब है उनकी, सरकार चल रही है

© चिराग़ जैन

Sunday, October 13, 2013

आपसे बात जब नहीं होती

अपनी बातों में कुछ नया भी नहीं
और कुछ ख़ास मुद्दआ भी नहीं
आपसे बात जब नहीं होती
ऐसा लगता है दिन गया भी नहीं

© चिराग़ जैन

Friday, October 11, 2013

मेला बरसात में

उठ जा रे
देख सुबह से बरस रहा है रामजी।
....बेमौसम
....झमाझम।

मुझे चिंता हुई
रामलीलाओं का क्या होगा?
और अधबने रावण के पुतले...
...वो तो भीग गए होंगे।

देखने गया
तो पाया
सब कुछ भीग गया था
रामलीला का मंच
रावण का दरबार
ऋष्यमूक पर्वत
दंडक वन
पर्णकुटी
पुष्पक विमान।

...ये क्या किया रामजी
अपनी ही लीला पर
पानी फेर दिया।

और वो अधबना रावण
पानी-पानी...

चीथड़े बन गए थे
उसके नीले, पीले परिधान
छाती तक काली हो गई थी
मूँछों के रंग से
और आँखों को ढँक लिया था
सोने के मुकुट ने बहकर।

वाह रे रावण
त्रेता से कलयुग तक आ गया
लेकिन आँखों पर आज भी
सोने का पर्दा!

लटक गया था रावण का चेहरा
लीला कमेटी के
पदाधिकारियों की तरह।

© चिराग़ जैन