जो ख़ास हैं उन्हीं की अब दाल गल रही है
और आम आदमी की टोपी उछल रही है
सब चोर हैं सदन में- अख़बार बोलता है
फिर भी ग़ज़ब है उनकी, सरकार चल रही है
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Saturday, October 26, 2013
Sunday, October 13, 2013
आपसे बात जब नहीं होती
अपनी बातों में कुछ नया भी नहीं
और कुछ ख़ास मुद्दआ भी नहीं
आपसे बात जब नहीं होती
ऐसा लगता है दिन गया भी नहीं
© चिराग़ जैन
और कुछ ख़ास मुद्दआ भी नहीं
आपसे बात जब नहीं होती
ऐसा लगता है दिन गया भी नहीं
© चिराग़ जैन
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पद्य,
मुक्तक
Friday, October 11, 2013
मेला बरसात में
उठ जा रे
देख सुबह से बरस रहा है रामजी।
....बेमौसम
....झमाझम।
मुझे चिंता हुई
रामलीलाओं का क्या होगा?
और अधबने रावण के पुतले...
...वो तो भीग गए होंगे।
देखने गया
तो पाया
सब कुछ भीग गया था
रामलीला का मंच
रावण का दरबार
ऋष्यमूक पर्वत
दंडक वन
पर्णकुटी
पुष्पक विमान।
...ये क्या किया रामजी
अपनी ही लीला पर
पानी फेर दिया।
और वो अधबना रावण
पानी-पानी...
देख सुबह से बरस रहा है रामजी।
....बेमौसम
....झमाझम।
मुझे चिंता हुई
रामलीलाओं का क्या होगा?
और अधबने रावण के पुतले...
...वो तो भीग गए होंगे।
देखने गया
तो पाया
सब कुछ भीग गया था
रामलीला का मंच
रावण का दरबार
ऋष्यमूक पर्वत
दंडक वन
पर्णकुटी
पुष्पक विमान।
...ये क्या किया रामजी
अपनी ही लीला पर
पानी फेर दिया।
और वो अधबना रावण
पानी-पानी...
चीथड़े बन गए थे
उसके नीले, पीले परिधान
छाती तक काली हो गई थी
मूँछों के रंग से
और आँखों को ढँक लिया था
सोने के मुकुट ने बहकर।
वाह रे रावण
त्रेता से कलयुग तक आ गया
लेकिन आँखों पर आज भी
सोने का पर्दा!
लटक गया था रावण का चेहरा
लीला कमेटी के
पदाधिकारियों की तरह।
© चिराग़ जैन
उसके नीले, पीले परिधान
छाती तक काली हो गई थी
मूँछों के रंग से
और आँखों को ढँक लिया था
सोने के मुकुट ने बहकर।
वाह रे रावण
त्रेता से कलयुग तक आ गया
लेकिन आँखों पर आज भी
सोने का पर्दा!
लटक गया था रावण का चेहरा
लीला कमेटी के
पदाधिकारियों की तरह।
© चिराग़ जैन
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