Friday, October 11, 2013

मेला बरसात में

उठ जा रे
देख सुबह से बरस रहा है रामजी।
....बेमौसम
....झमाझम।

मुझे चिंता हुई
रामलीलाओं का क्या होगा?
और अधबने रावण के पुतले...
...वो तो भीग गए होंगे।

देखने गया
तो पाया
सब कुछ भीग गया था
रामलीला का मंच
रावण का दरबार
ऋष्यमूक पर्वत
दंडक वन
पर्णकुटी
पुष्पक विमान।

...ये क्या किया रामजी
अपनी ही लीला पर
पानी फेर दिया।

और वो अधबना रावण
पानी-पानी...

चीथड़े बन गए थे
उसके नीले, पीले परिधान
छाती तक काली हो गई थी
मूँछों के रंग से
और आँखों को ढँक लिया था
सोने के मुकुट ने बहकर।

वाह रे रावण
त्रेता से कलयुग तक आ गया
लेकिन आँखों पर आज भी
सोने का पर्दा!

लटक गया था रावण का चेहरा
लीला कमेटी के
पदाधिकारियों की तरह।

© चिराग़ जैन

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