Saturday, June 14, 2014

बरसात की एक सुबह

लाजवाब है आज की सुबह
रात भर
धोया गया है सारा शहर

हर पेड़ को
नहलाया गया है रात भर

उत्सव का
नज़ारा कर रहा हूँ
अपनी बालकॅनी से।

दारू पी है शायद
नीम और पीपल ने।
अभी तक झूम रहे हैं
दोनों याड़ी।

सहजने की फलियाँ
बिछ गई हैं
...मुजरा करने के बाद।

मिट्टी की ख़ुश्बू वाला फ्रेशनर
अभी भी महक रहा है
परिंदे घुस आए हैं
मुफ्त की पार्टी उड़ाने।

एक ख़ूबसूरत-सा अहसास
बौराए जाता है मुझे भी!

© चिराग़ जैन

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