रात भर
धोया गया है सारा शहर
हर पेड़ को
नहलाया गया है रात भर
नहलाया गया है रात भर
उत्सव का
नज़ारा कर रहा हूँ
अपनी बालकॅनी से।
दारू पी है शायद
नीम और पीपल ने।
अभी तक झूम रहे हैं
दोनों याड़ी।
सहजने की फलियाँ
बिछ गई हैं
...मुजरा करने के बाद।
मिट्टी की ख़ुश्बू वाला फ्रेशनर
अभी भी महक रहा है
परिंदे घुस आए हैं
मुफ्त की पार्टी उड़ाने।
एक ख़ूबसूरत-सा अहसास
बौराए जाता है मुझे भी!
© चिराग़ जैन
नज़ारा कर रहा हूँ
अपनी बालकॅनी से।
दारू पी है शायद
नीम और पीपल ने।
अभी तक झूम रहे हैं
दोनों याड़ी।
सहजने की फलियाँ
बिछ गई हैं
...मुजरा करने के बाद।
मिट्टी की ख़ुश्बू वाला फ्रेशनर
अभी भी महक रहा है
परिंदे घुस आए हैं
मुफ्त की पार्टी उड़ाने।
एक ख़ूबसूरत-सा अहसास
बौराए जाता है मुझे भी!
© चिराग़ जैन
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