चलो बताएं आज तुम्हें वैज्ञानिक धर्म हमारा है
क्या हैं व्रत उपवास और क्या नियम त्याग संथारा है
हमें फर्क पड़ता है छोटी चींटी तक की पीर से
हमें अहिंसा मिली विरासत में भगवन् महावीर से
वृक्षों में जीवन होता है; अब ढूंढा विज्ञान ने
हमें बताया युगों पूर्व ये ऋषभदेव भगवान् ने
हमें लैंस की नहीं ज़रूरत जल के जीव बांचने को
हमें मिले हैं गुणस्थान अन्तस् का ताप जांचने को
शाकाहारी जीवन शैली, परहित का उपदेश मिला
हमें हमारे पुरखों से मानवता का सन्देश मिला
श्रावक श्रमण व्यवस्था वाला इक समाज विज्ञान मिला
जियो और जीने दो जैसा अद्भुत अविरल ज्ञान मिला
परिग्रह को जब पाप कहा तो साम्यवाद को नींव मिली
क्षमाभाव सर्वोपरि रक्खा; प्रेम-प्यार को जीभ मिली
हमने राणा के प्रताप को दानी भामाशाह दिए
जो अणुव्रत की नाव चलाएं तुलसी से मल्लाह दिए
हमने भारत के गौरव को चन्द्रगुप्त का मान दिया
बिम्बिसार, संप्राति, भोज और वीर अशोक महान दिया
हमने दिव्य प्रकाश पुंज; जब जब अंधियारी छाई; दिए
हमने अंतरिक्ष को भेदा विक्रम साराभाई दिए
जो हिंसा के घोर विरोधी, जन-गण के उन्नायक थे
वो बाबा गांधी भी तो इस जैन धर्म के गायक थे
अर्थमार्ग और मोक्षमार्ग का इक समतल आभास दिया
हमने अपनी भारत माँ को गौरवमयी इतिहास दिया
किसी जीव को नहीं सताएँ ये पावन संकल्प लिया
तर्कहीन धर्मांध न होवें ऐसा शास्त्र प्रकल्प लिया
जो मानवता की द्योतक है, मानव मन तक फैली है
वही अहिंसा जैनधर्म की मौलिक जीवन शैली है
लखनऊ में महावीर की प्रतिमा टूटी तब क्यों मौन रहे
वोटों की मंडी में सत्तर लाख की पीड़ा कौन कहे
भीतर माल ठूंस कर बाहर दाँत दिखाने बंद करो
मानवता की चिंता है तो बूचड़खाने बंद करो
हमने सदा पैरवी की है; पुरखों के सन्देश की
हमें ज़रूरत नहीं किसी न्यायालय के आदेश की
हम मानवता की रक्षा हित नियमों के मोहताज नहीं
हम तन-मन-धन से मानव हैं, कोरे ड्रामेबाज़ नहीं
हमने कभी नहीं पोसा है कर्मकांड के दूषण को
हमने शीश चढ़ाया केवल तर्कयुक्त आभूषण को
लो महत्व समझो सागर में मिलती जीवन धारा का
लो वैज्ञानिक मतलब समझो जैनों की संथारा का
जब शरीर अक्षम हो जाए बचने का कुछ ठौर न हो
जब मृत्यु प्रत्यक्ष खड़ी हो, राह कहीं पर और न हो
तब बेचैनी त्याग आत्मचिंतन दायित्व हमारा है
जीवन के अंतिम क्षण में निज का चिंत्वन संथारा है
जीवन के अंतिम अवसर का मधुर गान है संथारा
स्वास्थ्य शोथ कर देह समर्पण का विधान है संथारा
यह ऐसी तकनीक है जिससे जीवन का सुख नष्ट न हो
देह और अशरीर छूटने लगें तो किंचित कष्ट न हो
आत्मघात और संथारा के चिंतन में है इतना भेद
आत्मघात में मृत्यु प्रमुख है संथारा में मृत्यु निषेध
आत्मघात जैसी कायरता वीरों का तो तौर नहीं
हम वंशज हैं महावीर के कायर या कमज़ोर नहीं
-चिराग़ जैन
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