कंकडी को यदि तिजोरी में रखोगे
वो कनक का मूल्य जाँचेंगी यक़ीनन
क़ामयाबी से जुडी ओछी हथेली
सभ्यता का मुँह तमाचेंगी यक़ीनन
एक नग़्मा लिख लिया जिसने वही अब
वेद के वैभव पर अपना रौब झाड़े
डीप फ्रीज़र में पड़ा टुकड़ा ज़रा सा
हिमशिखर की श्वेत चादर को लताड़े
वेदियों में नगरवधुएँ मत बिठाओ
महफ़िलों में रोज़ नाचेंगी यक़ीनन
कृष्ण की रणनीति से अर्जुन लड़ेगा
कीर्ति फिर भी कर्ण के मस्तक चढ़ेगी
चक्रव्यूहों में जयी हो या नहीं हो
रीति तो अभिमन्यु का ही यश गढ़ेगी
आज तुम छल से समर को जीत जाओ
कल कथाएँ सत्य बाँचेंगी यक़ीनन
© चिराग़ जैन
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