Wednesday, February 27, 2019

युद्ध के बाद...

दो देश आमने-सामने खड़े हैं। सीमा पर तनाव है। नभ, थल और जल में होनेवाली हर आहट किसी अनहोनी की आशंका से मन कँपा रही है। यह कंपन, भय का कंपन कतई नहीं है। देश की रक्षा में तैनात वीर बेटों को मृत्यु से भयभीत होने की फ़ुर्सत होती ही कहाँ है।
मीडिया, युद्ध के उन्माद को भुनाकर टीआरपी बटोर रहा है। अपने आरामदायक बिस्तर पर लेटकर दर्शक किसी एक्शन फिल्म की तरह इन बुलेटिन्स को देखते हुए उन्मादी हो रहे हैं। टीवी की स्क्रीन से नज़र हटाकर मोबाइल की स्क्रीन पर टिकाओ तो सोशल मीडिया पर युद्ध की उतावली दिखाई देने लगती है। पाकिस्तान में पकड़े गए भारतीय पायलट की दुर्दशा का वीडियो क्लिप फॉरवर्ड करके हर कोई अपने मोबाइल में दर्ज संपर्कों पर यह इम्प्रेशन जमा रहे हैं कि मेरे पास सबसे पुख्ता और लेटेस्ट जानकारियाँ हैं।
इससे शायद हमारा कोई सूक्ष्म अहंकार पुष्ट होता होगा लेकिन एक पल के लिए उस परिवार के प्रति करुणा भी जागनी चाहिए जिसका बेटा इस वीडियो में दुश्मनों के बीच घिरा दिखाई दे रहा है। हम शेखचिल्ली की तरह वीरता की बड़बोली बातें करते समय यह कल्पना ही नहीं कर पाते कि इस अपरिचित पायलट की जगह हमारा अपना कोई इस वीडियो में दिखाई दे रहा होता तो शायद उंगलियाँ रूह से पहले काँप जातीं।
दो-दो विश्वयुद्ध लड़ चुकने के बाद यूरोप ने युद्ध से तौबा कर ली है। पूरा यूरोप सीमाविहीन हो चला है। युद्ध, अफ़वाह, शौर्य के खोखले जुमले, बदला, हमला, विध्वंस और खून-ख़राबे में नष्ट होनेवाले संसाधन मानव के जीवन स्तर को सुधारने में व्यय हो रहे हैं। कहते हैं कि कलिंग का रक्तपात देखकर राजहठ का शौर्य भी विरक्त हो गया था। कहते हैं कि मरणासन्न सुयोधन ने श्वास डूबने से पूर्व युधिष्ठिर का पश्चाताप देखा था।
कुछ घंटों, कुछ दिनों, कुछ सप्ताहों का एक युद्ध दो देशों को विकास की दौड़ में दशकों पीछे धकेल देगा। कुछ क्षणों का उन्माद सैंकड़ों चौखटों को हमेशा हमेशा के लिए अंधियारे से भर देगा। कुछ पलों का प्रतिशोध एक पूरी पीढ़ी को अनाथ कर देगा। हमारे पास केवल आँकड़े आएंगे कि भारत के इतने सैनिक ‘शहीद हुए’ और पाकिस्तान के इतने सैनिक ‘मारे गए’। हम मारे गए सैनिकों की संख्या के सम्मुख शहीद हुए सैनिकों की संख्या रखकर कम-ज़्यादा का आकलन करेंगे और क्रिकेट मैच के स्कोरबोर्ड की तरह यह ज्ञात कर पाएंगे कि किसका पलड़ा भारी है। इस प्रक्रिया के संपन्न होने के बाद हम उन आँकड़ों को भुला देंगे और बेचैनी से न्यूज़ बुलेटिन देखने लगेंगे।
एक पल के लिए भी हम उस मारे गए अथवा शहीद हुए किसी सैनिक के परिवार की मनोदशा का अनुमान लगाने की ज़हमत नहीं उठाएंगे। ख़ूब खून-ख़राबा होने के बाद हमारे यहाँ के डिप्लोमेट्स, उस दुश्मन के डिप्लोमेट्स के साथ बातचीत का लिए स्वीकृति दे देंगे और फिर कुछ घंटों की मशक्कत के बाद किसी समझौते पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। इस बीच जिन परिवारों के चिराग़ बूझेंगे उनकी सुधि किसी को नहीं आएगी। मीडिया सीमा रेखा को भूलकर शिखर वार्ता की तैयारियों, अतिथि देश के प्रधानमंत्री की पोशाक, खानपान, रुकने के स्थान और पर्यटन की कवरेज में व्यस्त हो जाएगा।
हम अपने सैनिकों के शौर्य को बिसारकर अपने देश की मेहमान नवाज़ी पर रीझने लगेंगे। एक काग़ज़ के टुकड़े पर हस्ताक्षर होंगे। दोनों मुल्कों के राष्ट्राध्यक्ष हाथ मिलाते हुए फ़ोटो खिंचवाएंगे। फिर एक साझा बयान जारी होगा और दस-बारह साल के लिये छुटपुट घटनाओं के भरोसे अपने सैनिकों को छोड़कर अपने-अपने काम में व्यस्त हो जाएंगे।
काश, हम अपने उन्माद के अंधियारे में बेटे खोने का दुःख टटोलने की कोशिश कर पाते। काश हम समझ पाते कि दो मुल्कों के एक सौ चालीस करोड़ लोगों के जीवन और भविष्य की कीमत पर युद्ध की ओर बढ़ना किसी के लिए भी सुखद नहीं होगा। काश हम स्वीकार कर पाते कि बातचीत की टेबल तक कि यात्रा यदि युद्ध के मैदान से होकर न जाए तो कई आंगनों को बिलखने से बचाया जा सकेगा।

© चिराग़ जैन

Tuesday, February 19, 2019

द्वितीयो नास्ति

भारत देशभक्तों का देश है। किसी भी आपदा की स्थिति में हम आपदा के निवारण करने की बजाय अपनी देशभक्ति साबित करने में व्यस्त हो जाते हैं। हमारे पास देशभक्ति की कसौटी पर कसने के लिए राजनीति है और देशभक्ति के रास्ते पर मिटने के लिए सेना। इसलिए हम अपने हिस्से की देशभक्ति निभाना आवश्यक नहीं समझते। 
हम चौकन्ने देशभक्त लोग हैं। देशभक्ति हो या न हो, परंतु देशभक्ति का शोर होता रहना चाहिए। इसीलिए हमारी रुचि स्वयं को देशभक्त बनाने में कम है और शेष लोगों को देशद्रोही साबित करने में अधिक हैं। किसी ने पुलवामा हमले पर श्रद्धांजलि नहीं दी तो वो देशद्रोही हो गया। किसी ने फेसबुक पर प्रोफ़ाइल फ़ोटो में तिरंगा नहीं लगाया तो वह भी देशद्रोही हो गया। हम दूसरों को कसमें दे-देकर देशभक्ति के फ़ॉर्वर्डेड संदेशों के प्रचार हेतु बाध्य करते हैं ताकि मनुष्यों में न सही, पर कम से कम मोबाइलों में तो देशभक्ति भर ही जाए। 
हम लालबत्ती जम्प करते समय दिलेर हो जाते हैं और देश के नियमों की धज्जियाँ उड़ा देते हैं। पूरे देश में कुल तीन प्रतिशत लोग भी टैक्स नहीं भरते लेकिन शत प्रतिशत लोग सरकार की नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगाने को तैयार रहते हैं। ट्रैफिक हवलदार को रिश्वत देने की पेशकश करते समय, देशभक्ति हमारी आत्मा को नहीं धिक्कारती। नक्शा पास कराए बिना चोरी से एक्स्ट्रा कमरा बनाकर हम पूरी सोसाइटी के सौंदर्य का सत्यानाश कर देते हैं। गाड़ी पार्क करते समय देश के अन्य नागरिकों को होने वाली असुविधा का ध्यान नहीं रखते, लेकिन हम देशभक्त हैं। 
अफ़वाहों के प्रचार में हम अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स को आगे करके देशभक्ति के शोर में योगदान देते हैं। सड़क पर खड़े होकर ट्रकों से वसूली करता हवलदार भी हर उच्छ्वास के साथ राजनीति को देश की बर्बादी का कारण बता देता है। दफ़्तरों में रिश्वत और कामचोरी को पोसने वाले बाबू भी जब शाम को घर लौटते हैं तो रास्ते भर सरकार को कोसते हुए घर पहुँचते हैं। टैक्सी-रिक्शावाले मीटर से चलने को राज़ी नहीं हैं, लेकिन सरकार से अपेक्षा करते हैं कि सरकार सवारी की जेब का सारा पैसा उनकी झोली में क्यों नहीं डाल देती!
अस्पतालों से इलाज की बजाय बीमारियाँ मिल रही हैं, डॉक्टर्स अंगों का कारोबार कर रहे हैं; दवाई कंपनियों और पैथलैब की कमीशन पर उनका पूरा ध्यान केंद्रित है लेकिन भारत को खोखला करने का आरोप सरकार पर लगता है। इंजीनियर्स और ठेकेदारों ने देश की मज़बूत बुनियाद पर चूना लगाया है। लेकिन देश की कमज़ोरी का जिम्मेदार सिस्टम को माना जाता है। परचूनिया मिलावट से पीछे नहीं हटता, अध्यापक ट्यूशन का धंधा कर रहा है, अधिवक्ता अपराध को अभयदान दे रहे हैं, न्यायालय सेटिंग और जुगाड़ की कार्यशाला बनते जा रहे हैं। पुलिस जनता को जानवर समझती है और जनता पुलिस को चौपाया। 
एयरलाइंस जनता को लूटने का पूरा तंत्र विकसित कर चुकी हैं। बैंकर्स नोटबन्दी में कमाने लगे और नोटबन्दी फेल हो गई। सरकारी फ्लैट बनते हैं तो दलालों का नेटवर्क भी साथ-साथ तैयार हो जाता है। बस कंडक्टर टिकट दिए बिना पैसे ले लेता है। प्राइवेट ड्राइवर पैट्रोल चुरा रहे हैं। निगम के पार्कों में लगवाले गए बैंच, झुग्गियों में सोफ़े की भूमिका अदा कर रहे हैं। और उन्हीं बैंचों पर बैठ कर हम चर्चा कर रहे हैं कि- ‘सब साले चोर हैं, देश के लिए कोई नहीं सोचता।’

© चिराग़ जैन

उन्माद का दौर

हम अनियंत्रित उन्माद के माहौल में खड़े हैं। पिछले कुछ वर्षों में राजनीति ने हमारे भाषा संस्कार के जो परखच्चे उड़ाए/उड़वाए हैं उसका वास्तविक स्वरूप इन दिनों सबको दिखाई दे रहा है। 
पुलवामा की घटना के बाद मीडिया के पास कंटेंट की कमी पूरी हो गई है। प्रियंका गांधी की एंट्री, रॉबर्ट वाड्रा का मुक़द्दमा और गठबंधन की छीछालेदर के मुद्दे घिस चुके थे। ऐसे में पुलवामा की दुर्घटना पर पाकिस्तान को गरियाने और लतियाने का क्रम प्रारम्भ हो गया। जनता में पीड़ा और आक्रोश था, मीडिया ने उसे उन्माद बना दिया। चैनल्स ने लाशों के चीथड़े, गाड़ी के परखच्चे, तिरंगे में लिपटे ताबूत, कांधा देते गृहमंत्री और परिक्रमा करते प्रधानमंत्री से यात्रा शुरू की थी; जो शहीद परिवारों की बिलखती औरतों के लांग शॉट्स, आँसू भरी आँखों के ईसीयू, शवयात्राओं के ड्रोन शॉट्स, दुखी पिता की बाइट्स, बिलखती माँओं के साक्षात्कार और टीवी पर दिखने को लालायित भीड़ के थॉट कलेक्शन से होते हुए; बारूद, जंग, आग, धुआँ, चीख़, पुकार, युद्ध, टैंक, मिसाइल, गाली-गलौज और चरित्र-हत्याओं तक पहुँच गई है।
जनता की भावनाएं भाषा की हर मर्यादा लांघ रही है। आज एक रैली की वीडियो देखी जिसमें नारे लग रहे हैं : "पाकिस्तान तेरी बहन...."; सानिया मिर्ज़ा को गद्दार कहा जा रहा है, सिद्धू को देशद्रोही बताया जा रहा है, मोदी जी को नाकारा कहा जा रहा है, राहुल गांधी को बम बांध कर पाकिस्तान में घुस जाने की सलाह दी जा रही है। पुलवामा के बाद हुई अमित शाह और नरेंद्र मोदी की रैलियों को संवेदनहीनता से जोड़ा जा रहा है। नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की हँसी को उनकी निष्ठा से जोड़ कर देखा जा रहा है। फोटोशॉप करके राहुल गांधी की मोबाइल चलाते हुए तस्वीर के साथ अभद्र और असंगत टिप्पणी लिखी जा रही है। मनोज तिवारी किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में नाच लिए तो हंगामा मचा दिया।
जम्मू-कश्मीरी मूल के सभी छात्रों को दुश्मन मानते समय हमें यह ध्यान ही नहीं आया कि पुलवामा में शहीद होने वाले बेटों में जम्मू की शहादत भी शामिल थी। सभी मुसलमानों को आतंकवादी मानते समय हमें ध्यान ही नहीं आता कि शहीदों की इस सूची में मुसलमान बेटे भी शामिल हैं।
इस उन्माद से कभी कोई हल नहीं निकलेगा। यह समय अपनी देशभक्ति सिद्ध करने के लिए दूसरों को राष्ट्रद्रोही साबित करने का नहीं है। इस समय एकजुट होकर अपनी सेना को आश्वस्त करने का मौका है कि तुम सीमाएँ संभालो, हम देश के भीतर एका बनाए रखेंगे।
घर में जवान बेटे की लाश आती है तो आंगन रोने लगता है। नुक्कड़ भर्त्सना करते हैं। थाने कार्रवाई करते हैं। लेकिन कमरा बिल्कुल मौन हो जाता है।
कोई भी प्रतिक्रिया करते समय इतना ध्यान रखना चाहिए कि दुःख की घड़ी में संयम खोकर हम देश की एकाग्रता को भंग ही कर रहे हैं।

✍️ चिराग़ जैन

Saturday, February 16, 2019

पुलवामा

तैने सोता शेर जगाया है
अब तू ख़ैर मनाइयो
पूरा भारत देश रुलाया है
अब तू ख़ैर मनाइयो

लड़ने के हालात नहीं थे
राही थे, तैनात नहीं थे
मौत उन्हें छू पाई क्योंकि
बंदूकों पर हाथ नहीं थे
उनको धोखे से मरवाया है
अब तू ख़ैर मनाइयो

अब तू देख, उपद्रव होगा
आग उगलता भैरव होगा
अब तक विष पीते आए हैं
अब छाती पर तांडव होगा
तैने तीजा नेत्र खुलाया है
अब तू ख़ैर मनाइयो

रग-रग में ज्वाला भड़की है
जन-जन की बाजू फड़की है
आँसू ने शोले उगले हैं
आँखों मे बिजली कड़की है
तैने अपना काल बुलाया है
अब तू ख़ैर मनाइयो

© चिराग़ जैन

Thursday, February 14, 2019

पुलवामा

आँसू भेजे हैं घाटी ने
चिथड़े बीने हैं माटी ने
फिर धोखे से घात किया है
कायरता की परिपाटी ने
अब पापी मतलब समझेगा, धोखे के परिणाम का
अंतिम पन्ना हम लिखेंगे, इस भीषण संग्राम का

छल का शीश नहीं कट पाया, तो यह रण आश्वस्त न होगा
जब तक न्याय नहीं हो जाता, तब तक सूरज अस्त न होगा
युग-युग का इतिहास खँगालो, पाप पराजित होता आया
लंका जलनी है रावण की, राघव का घर ध्वस्त न होगा
वीरों के तूणीर खुलेंगे
सोए शर ज्वाला उगलेंगे
दुःशासन का लोहू लेकर
पांचाली के केश धुलेंगे
तुमने मार्ग स्वयं खोला है, अपने पूर्णविराम का
अंतिम पन्ना हम लिखेंगे, इस भीषण संग्राम का

अनुनय की भाषा को शठ ने, रघुवर की दुर्बलता जाना
शिशुपालों ने मधुसूदन में, अपना काल नहीं पहचाना
इतने अवसर मिलने पर भी, हिंसा का पथ छोड़ न पाए
आदत से लाचार हुए हो, ज्यों कोढ़ी का कोढ़ खुजाना
फिर मस्तक पर बल उभरे हैं
कृष्ण सुदर्शन धार खड़े हैं
फिर अर्जुन के नैन झरे हैं
फिर से सारे घाव हरे हैं
फिर से बिलख-बिलख कर रोया, मंदिर अक्षरधाम का
अंतिम पन्ना हम लिखेंगे, इस भीषण संग्राम का

© चिराग़ जैन

Saturday, February 9, 2019

ऋतुराज आया है

बाग की सब क्यारियों के हाथ पीले हो गए हैं
फूल की हर पाँखुरी के ओंठ गीले हो गए हैं
श्वास में सरगम सजाता साज आया है
लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

साँस में बहकी हवाओं का नशा सा घुल रहा है
प्रीति की बारिश हुई है, ज्ञान सारा धुल रहा है
पर्वतों को खुशबुओं ने प्यार से छू भर लिया है
वज्र सा अड़ियल हिमालय भी अभी हिल-डुल रहा है
ज्ञानियों के ज्ञान से मन बाज आया है
लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

दल भ्रमर का बूटियों के पास मंडराने लगा है
कोयलों ने गीत गाए, आम बौराने लगा है
ठूठ से लिपटी हुई है एक दीवानी लता तो
बाग का वीरान कोना, बाग कहलाने लगा है
दम्भ होकर प्रेम का मोहताज आया है
लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

गुनगुनी सी धूप के संग बेल-बूटों का प्रणय है
प्रेमियों को हर नियम के टूट जाने पर अभय है
ठंड से ठिठुरी धरा अंगड़ाइयां लेने लगी है
श्वेत छितरी बदलियों के बीच सूरज का उदय है
मोतियों के थाल में पुखराज आया है
लग रहा है द्वार पर ऋतुराज आया है

© चिराग़ जैन