पुलवामा की घटना के बाद मीडिया के पास कंटेंट की कमी पूरी हो गई है। प्रियंका गांधी की एंट्री, रॉबर्ट वाड्रा का मुक़द्दमा और गठबंधन की छीछालेदर के मुद्दे घिस चुके थे। ऐसे में पुलवामा की दुर्घटना पर पाकिस्तान को गरियाने और लतियाने का क्रम प्रारम्भ हो गया। जनता में पीड़ा और आक्रोश था, मीडिया ने उसे उन्माद बना दिया। चैनल्स ने लाशों के चीथड़े, गाड़ी के परखच्चे, तिरंगे में लिपटे ताबूत, कांधा देते गृहमंत्री और परिक्रमा करते प्रधानमंत्री से यात्रा शुरू की थी; जो शहीद परिवारों की बिलखती औरतों के लांग शॉट्स, आँसू भरी आँखों के ईसीयू, शवयात्राओं के ड्रोन शॉट्स, दुखी पिता की बाइट्स, बिलखती माँओं के साक्षात्कार और टीवी पर दिखने को लालायित भीड़ के थॉट कलेक्शन से होते हुए; बारूद, जंग, आग, धुआँ, चीख़, पुकार, युद्ध, टैंक, मिसाइल, गाली-गलौज और चरित्र-हत्याओं तक पहुँच गई है।
जनता की भावनाएं भाषा की हर मर्यादा लांघ रही है। आज एक रैली की वीडियो देखी जिसमें नारे लग रहे हैं : "पाकिस्तान तेरी बहन...."; सानिया मिर्ज़ा को गद्दार कहा जा रहा है, सिद्धू को देशद्रोही बताया जा रहा है, मोदी जी को नाकारा कहा जा रहा है, राहुल गांधी को बम बांध कर पाकिस्तान में घुस जाने की सलाह दी जा रही है। पुलवामा के बाद हुई अमित शाह और नरेंद्र मोदी की रैलियों को संवेदनहीनता से जोड़ा जा रहा है। नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की हँसी को उनकी निष्ठा से जोड़ कर देखा जा रहा है। फोटोशॉप करके राहुल गांधी की मोबाइल चलाते हुए तस्वीर के साथ अभद्र और असंगत टिप्पणी लिखी जा रही है। मनोज तिवारी किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में नाच लिए तो हंगामा मचा दिया।
जम्मू-कश्मीरी मूल के सभी छात्रों को दुश्मन मानते समय हमें यह ध्यान ही नहीं आया कि पुलवामा में शहीद होने वाले बेटों में जम्मू की शहादत भी शामिल थी। सभी मुसलमानों को आतंकवादी मानते समय हमें ध्यान ही नहीं आता कि शहीदों की इस सूची में मुसलमान बेटे भी शामिल हैं।
इस उन्माद से कभी कोई हल नहीं निकलेगा। यह समय अपनी देशभक्ति सिद्ध करने के लिए दूसरों को राष्ट्रद्रोही साबित करने का नहीं है। इस समय एकजुट होकर अपनी सेना को आश्वस्त करने का मौका है कि तुम सीमाएँ संभालो, हम देश के भीतर एका बनाए रखेंगे।
घर में जवान बेटे की लाश आती है तो आंगन रोने लगता है। नुक्कड़ भर्त्सना करते हैं। थाने कार्रवाई करते हैं। लेकिन कमरा बिल्कुल मौन हो जाता है।
कोई भी प्रतिक्रिया करते समय इतना ध्यान रखना चाहिए कि दुःख की घड़ी में संयम खोकर हम देश की एकाग्रता को भंग ही कर रहे हैं।
✍️ चिराग़ जैन
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