गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Sunday, March 31, 2019
मज़ाकिया भारत
Thursday, March 28, 2019
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का आम चुनाव सामने है। यह संभवतः पहला ऐसा आम चुनाव है जिसमें मीडिया से अधिक प्रभाव सोशल मीडिया का है। अब से पहले राजनीति में एक जुमला चलता था कि जनता की याद्दाश्त बहुत कमज़ोर है। लेकिन अब राजनीति यह समझ गई है कि मोबाइल की याद्दाश्त कमज़ोर नहीं होती। इसी कारण राजनीति ने न केवल ढिठाई की कोटिंग मज़बूत करवा ली है, बल्कि भाषा का स्तर भी इतना गिरा लिया है कि जनता उनकी बातों के तथ्यों तक पहुंचने की बजाय, बातों के तरीकों में उलझ कर रह जाए। हमें फ़ख़्र है कि हमें जिन लोगों को क़ानून बनाने के लिए नियुक्त करने जा रहे हैं वे आधिकारिक बैठक में जूते से अपने सहकर्मी की पिटाई करते हैं। हमें गुमान है कि जिन लोगों के हाथ में सभ्यता की बागडोर थमानी है वे सार्वजनिक रूप से माँ-बहन की गाली बकते देखे जाते हैं। हम जिनसे देश को समृद्ध बनाने की उम्मीद कर रहे हैं वे अपने कुर्ते की जेब फाड़ कर जनता के सम्मुख वोट की भीख मांगते देखे गए हैं। ज़िनको वचन निभाने की मिसाल क़ायम करनी थी, वे ओछे स्वार्थों के लिए बेशर्मी से दल बदलते फिर रहे हैं। राष्ट्रसेवा की आड़ में राजनीति का धंधा करने वाले सियारों का असली रंग तब सामने आता है जब उन्हें उनकी पार्टी चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं देती। जनता के सम्मुख चुनावी रैलियों में प्रतिद्वंदियों की चरित्र हत्या की जाती है और फिर सरकार बनाने के जोड़-तोड़ में उन्हीं चरित्रहीन लोगों से गलबहियां डाली जाती हैं। बेशर्मी के साथ चुने हुए प्रतिनिधि ख़रीदे जाते हैं और हम लोकतंत्र की अरथी पर सजी हुई मूल्यों की लाशों को सरकार मानने लगते हैं। हमारी जनता पन्द्रह लाख, बहत्तर हज़ार और मुफ्त राशन की मरीचिका में अपना वोट वायदों के रेगिस्तान में फेंक आती है और राजनीति के गिद्ध वोटों के चीथड़ों को नोच नोच कर अपना पेट भरते रहते हैं। हमारे चुनावों में या तो अंतरिक्ष की उपलब्धियां गिनाई जाती हैं या फिर हवाई जुमले उछाले जाते हैं। यह हमारे नेताओं की ईमानदारी है कि चुनाव ख़त्म होते ही वे जनता को बता देते हैं कि उनके सारे वायदे केवल चुनावी जुमले थे। इस बार भी यही जुमले उछलेंगे और हम टेलिविज़न की बहस देखकर अपने राहुल या अपने मोदी के दांव देखकर ख़ुश होते रहेंगे। हम मोदी, राहुल, माया, अखिलेश, ममता, ओवैसी, उद्धव, नीतीश, शिवपाल, पासवान, अब्दुल्ला, महबूबा, नायडू, केजरीवाल या चौटाला की अंधभक्ति में देशभक्ति बिसरा चुके हैं। हमें किसी अभिनेता या अभिनेत्री की शक्ल दिखाकर प्रभावित किया जाएगा और हम हो जाएंगे। एक पार्टी दिल्ली के पुरबियों को साधने के लिए भोजपुरी के एक गायक को प्रदेश अध्यक्ष बनाती है और पुरबियों की वोट साध लेती है। दूसरी पार्टी पंजाबी वोटर को ख़ुश करने के लिए गणित भिड़ाती है और पंजाबी वोट साध लिया जाता है। जिस देश में जातीय आधार पर राजनैतिक दल बनाना अपराध है, उस देश में टीवी चैनल सरेआम जातीय गणित और चुनाव के जातीय समीकरणों पर घंटों चर्चा करते हैं और हमारे न्यायालय आँख पर पट्टी बांधे बैठे रहते हैं। हमारे लोकतंत्र में सबके गिरेबान चाक हैं। जनता को अपने टुच्चे लालच की साध में राजनेताओं के शिकंजे में स्वयं फंसने में कोई आपत्ति नहीं है तो राजनीति के इस नंगे नाच पर आक्षेप करना जनता को भी कतई शोभा नहीं देता। © चिराग़ जैन
Tuesday, March 26, 2019
छलायण
Tuesday, March 12, 2019
एयर इण्डिया
आइए साहब
एयर इंडिया का जहाज देखिए
जब ये जहाज उड़ता है ना आसमान में
तो यह अकेला नहीं उड़ता
इसके साथ उड़ती हैं
हज़ारों आँखों की आशाएं
सुरक्षा की सारी परिभाषाएं
किसी की प्रतीक्षा से किया गया वादा
किसी का जीवन बचा लेने का इरादा
किसी का सपना पूरा करने की चाह
किसी का कॅरियर बना देने की परवाह
इस जहाज को
हम भारतीयों ने अपने श्रम से पोसा है
यह जहाज हर मंज़िल पर
सुरक्षित पहुँचने का भरोसा है
जब कोई विदेश जाता है इस जहाज से
तो यात्रा में उसको
अपनत्व का परिवेश मिलता है
विदेश की धरती पर कदम रखने से
एक क्षण पहले तक
उसे आसपास अपना देश मिलता है
सिपाही को मोर्चे पर पहुँचाना हो
आपदा के समय पर
मानव धर्म निभाना हो
मुसीबत में फँसे अभागों की
मदद का सवाल हो
बाढ़ हो, सूनामी हो,
अकाल हो या भूचाल हो
एयर इंडिया का जहाज
हर समय तैनात रहता है
हर मुश्किल में
अपने देशवासियों के साथ रहता है
भीतर झाँको
तो यात्रा की थकान के बीच
सुकून भरी निंदिया है
बाहर से देखो तो
आसमान के माथे पर
सजावटी बिंदिया है
जी साहब
ये एयर इंडिया है
जी हुज़ूर
ये एयर इंडिया है
© चिराग़ जैन
Wednesday, March 6, 2019
हम तो भाप से भाँप लेते हैं
हम घटनाओं का सामान्यीकरण करने के अभ्यस्त हैं। किसी एक घटना से पूरे व्यक्ति का, किसी एक व्यक्ति से पूरे समुदाय का, किसी एक समुदाय से पूर समाज का और किसी एक समाज से पूरे राष्ट्र का चरित्र आकलन करना हमारा अभ्यास है। इस अभ्यास में हम तर्कहीन हो जाते हैं। प्रत्येक बहस में हम अपनी बुद्धिमत्ता प्रदर्शित करने के उद्देश्य से कूदते हैं और जब बुद्धिमत्ता बहस से पहले समाप्त हो जाती है तो ऐसे तर्क करने लगते हैं जिनसे सबको पता चल जाए कि हम केवल बुद्धिमत्ता के भरोसे बहस में नहीं आए हैं, देर तक टिके रहने के लिए हमारे पास मूर्खता भी है। संत कबीर नगर में भाजपा के एक सांसद ने भाजपा के ही एक विधायक का अभिनन्दन कर दिया। विवाद का कारण वही था - "तेरी कमीज़ मेरी कमीज़ से ज़्यादा सफेद कैसे!" इस सम्मान समारोह में बाकायदा मंत्रोच्चार के बीच अनुशासन की आहुति दी गई। इस घटना को सोशल मीडिया पर ट्रोल करते समय लोग पूरी भाजपा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। यह ग़लत बात है। किसी भी एक व्यक्ति के आचरण से पूरी पार्टी का आचरण तय नहीं किया जा सकता। कोई भी एक व्यक्ति पूरी विचारधारा का चरित्र नहीं हो सकता। ऐसा करना अपने आकलन के साथ बेईमानी करना है। यह हम पूर्व में भी करते रहे हैं। एक मणिशंकर अय्यर के बयान से पूरी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं। एक साध्वी के बयान से पूरी भाजपा पर प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं। इस आचरण के कारण लोकतंत्र का जनमत भीड़ के उन्माद में परिवर्तित हो जाता है। यह हमने जातियों में भी किया है। एक गांधी महात्मा हो गए तो सारे गांधी ख़ुद को संत बताने पर उतारू हो गए। एक मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो सारे मोदी देश का पैसा लेकर घूमने निकल लिए। ऐसा करना ग़लत है। एक राहुल गांधी पूरी कांग्रेस का चरित्र नहीं हैं। एक नरेंद्र मोदी पूरी भाजपा का चरित्र नहीं हैं। एक लोहिया के वैचारिक कुनबे में सारे लोहिया जन्म नहीं लेते। अम्बेडकर के बैनर तले इकट्ठा होकर लोग अम्बेडकर के बनाए कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हैं। लोहिया की विरासत को बपौती मानने वाले सत्ता की वसीयत को लेकर सिर फुटव्वल करते मिले। भगवा पहनने से कोई हिन्दू नहीं हो जाता और चरखा चलाने से कोई गांधी नहीं हो जाता। इस बाह्य ढोंग के सहारे ही सियासत की गाड़ी चलती है। हम सब जानते हैं कि मुसलमानों के मंच पर टोपी पहनकर चढ़ने वाले लीडर हिंदुओं के मंच पर पहुँचते ही रामनामी ओढ़ लेते हैं। हम सबको मालूम है कि राहुल गांधी केवल वोट पाने के लिए दलितों के घर खाना खाने गए। हम सबको पता है कि सफाई कर्मियों के पैर धोकर मोदी जी ने चुनावी चाल चली है। हम सबको सब पता है। हम सब कुछ जानकर भी इस अभिनय को चरित्र के झरोखे से निहारते रहते हैं। राहुल गांधी बैंगकॉक जाते हैं, नरेंद्र मोदी मिसेज अम्बानी से हाथ मिलाते हैं, राहुल गांधी ने शादी नहीं की, नरेंद्र मोदी ने पत्नी को छोड़ दिया, राहुल गांधी को भाषण देना नहीं आता, नरेंद्र मोदी ने अमरीका के प्रेजिडेंट को झूला झुलाया, राहुल गांधी के कुर्ते की जेब फटी है, नरेंद्र मोदी का सूट बहुत महंगा है ...इन मुद्दों पर हम वोट देते हैं। एक दरवाज़े से निकलता हुआ हर शख़्स एक जैसा हो, यह सम्भव नहीं है। एक बगीचे में उगने वाले सारे फूल एक जैसे नहीं होते। कई बार चमेली भी केवल झाड़ बनकर रह जाती है और कई बार नागफनियों पर भी खूबसूरत फूल खिल जाते हैं। एक ही व्यक्ति एक विषय पर सही और दूसरे विषय पर ग़लत हो सकता है। लेकिन हम इतने जिद्दी हैं कि या तो किसी को शत प्रतिशत सही मानेंगे या शत प्रतिशत ग़लत। हर शख़्स में, हर समुदाय में, हर पंथ में, हर दल में, हर विचारधारा में, हर आंगन में, हर देश में, हर घटना में कुछ सही और कुछ ग़लत ज़रूर होता है। इन दोनों को अलग-अलग न किया जाए तो अंधभक्ति और अंधविरोध जन्म लेता है, सुचारु व्यवस्थाएं नहीं।
© चिराग़ जैन
Friday, March 1, 2019
पश्चिम से सूरज उगता
धीरज ने बदला अपनी क़िस्मत का लेखा
दहशत के अंधियारे ने दम तोड़ दिया है
दुनिया ने पश्चिम से सूरज उगता देखा
© चिराग़ जैन