यूँ ही पूछ बैठी थीं तुम
‘मेरे बिना रह पाओगे?’
सुनकर
मेरे मस्तिष्क में
एकाएक कौंध गया एक और प्रष्न-
‘क्या तुम सही उत्तर सह पाओगी?’
...ख़ुद से उलझते-जूझते
अनायास ही
मेरे मुँह से निकल गया-
‘नहीं!’
...और तुमने
इसे अपने प्रश्न का
उत्तर समझ लिया।
© चिराग़ जैन
‘मेरे बिना रह पाओगे?’
सुनकर
मेरे मस्तिष्क में
एकाएक कौंध गया एक और प्रष्न-
‘क्या तुम सही उत्तर सह पाओगी?’
...ख़ुद से उलझते-जूझते
अनायास ही
मेरे मुँह से निकल गया-
‘नहीं!’
...और तुमने
इसे अपने प्रश्न का
उत्तर समझ लिया।
© चिराग़ जैन
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