Thursday, April 20, 2000

महावीर जैन नहीं थे

महावीर मुसलमान थे।
क्योंकि उनके पास मुकम्मल ईमान थे।

महावीर सिख थे।
क्योंकि वे सितम करने से ख़बरदार करते थे।

महावीर हिन्दू थे।
क्योंकि वे हिंसा से दूर थे
और सब जीवों से प्यार करते थे।

महावीर पारसी थे।
क्योंकि उनमें
संसार के पार देखने की क्षमता थी।

महावीर आर्यसमाजी थे।
क्योंकि उनमें सत्य के प्रति ममता थी।

हाँ, महावीर बुद्ध थे।
क्योंकि उनके उसूल दुर्बुद्धि के विरुद्ध थे।

…और हाँ!
महावीर इसाई भी थे
क्योंकि वे इंसानियत के साईं भी थे।

लेकिन, महावीर जैन नहीं थे।
…क्योंकि उनकी वाणी में
हमारी जिव्हा की तरह कटु बैन नहीं थे;
उनके हृदय में
श्वेताम्बर-दिगम्बर का झगड़ा न था;
उनके अन्तस् में
बीस और तेरह का रगड़ा न था;
वे नियम थोपते नहीं थे;
वे हिंसा रोपते नहीं थे;
वे नित नए धर्म गढ़ते नहीं थे;
वे लकीर के फ़क़ीर बनकर
लड़ते नहीं थे;
वे हमारी तरह ढोंगी नहीं थे;
वे दिन के जोगी
रात के भोगी नहीं थे;
वे तो आडम्बरों के बिन थे
सचमुच……..
मेरे महावीर जैन नहीं थे
….’जिन’ थे।

‘जिनस्य अनुयायी इति जैनः’

© चिराग़ जैन

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