Tuesday, June 8, 2021

वो सुबह कभी न आए!



उस दिन सुबह जब आँख खुली तो पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी। मोबाइल पर आदित्य जी की मृत्यु का समाचार था। तब सोशल मीडिया इतना एक्टिव नहीं था। सो, परस्पर फोन से ही सूचनाएँ मिल पाती थीं। कुछ कवियों को फोन मिला तो पता चला कि दुनिया लुट चुकी है। रात को जो कवि-कुनबा उत्सवों की रौशनी में नहाया हुआ था, अब उसके आंगन में मातम पसरा है।
टेलिविज़न पर न्यूज़ चैनल खोला तो वहाँ भी शोक ही शोक दिखा। कहीं हबीब तनवीर साहब की श्रद्धांजलि चल रही थी तो कहीं देर रात घटी इस दुर्घटना की रपट प्रसारित हो रही थी। प्रकृति हम मनुष्यों के सुख-दुःख से हमेशा स्वयं को बचाए रखती है। हम ज़मीन में धँसे जा रहे थे, और सूरज रोज़ की तरह अंगारे बरसाता हुआ ऊपर चढ़ रहा था।
दिल्ली, बैतूल, शाजापुर... सबके चेहरे लटक गये थे। एक जहाज़, हास्य के शिखर को बांधकर दिल्ली ला रहा था, तो उधर पंजाब से बैतूल पहुँचनेवाले एक हवाई जहाज में क्रन्दन सवार था। एक मातम भोपाल से बैतूल जा रहा था, तो दूसरी एम्बुलेंस शाजापुर की नम आँखों की दर्शनेच्छा को लिए सड़क पर दौड़ रही थी। उधर ओम भाई अस्पताल में मल्टीपल सर्जरी करवाते हुए अर्द्धमृत्यु में जा चुके थे।
दिल्ली में जब आदित्य जी का शव आया तो मालवीय नगर श्मशान घाट के द्वार पर मैंने अल्हड़ जी को देखा। उनकी देह में पीड़ा, आँखों में आँसू और होंठों पर बहुत गहरा मौन था। मुझे याद है कि किसी छले गये व्यक्ति की भाँति वे श्मशान के बाहर ही एक चबूतरे पर बैठ गये थे। उनकी गर्दन नीचे झुक गयी थी और मन ही मन किसी बात पर अस्वीकृति देते हुए नकारात्मक मुद्रा में हिल रही थी।
उधर मुखाग्नि से पूर्व कुछ कवियों ने आदित्य जी के अंतिम दर्शन की इच्छा प्रकट की तो बड़े लोगों ने मना कर दिया। दुर्घटना के कारण चेहरा देखने लायक नहीं बचा था। ठहाकों के ऋषि को चिता पर लिटाकर जब श्मशान से बाहर निकले तो हर आँख नम थी।
उधर बैतूल और शाजापुर ने पूरे शहर में पुष्पवृष्टि करके अपने रचनाकारों को विदा किया। उधर अल्हड़ जी अस्पताल में भरती हो गये थे और ओम व्यास ओम जी जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहे थे। आदित्य जी का शोक पूर्ण होने से पूर्व ही अल्हड़ जी चले गये। पीड़ा पर एक परत और चढ़ गयी। श्रद्धांजलियों, अंत्येष्टियों और शोक सभाओं के इस दौर से उबर पाते कि तब तक ओम भाई भी विदा हो गये।
...आज एक युग बीत गया उस अशुभ काल का। लेकिन अभी तक उस दौर को याद करके मन सिहर उठता है। मुझे आज भी लगता है कि साँची से भोपाल आनेवाली उस सड़क पर अभी कोई गाड़ी दौड़ती हुई आएगी लेकिन आगे खड़े ट्रॉले को देखकर उसके ब्रेक लग जाएंगे...!

© चिराग़ जैन

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