अब तक पथ पर फूल बिछे थे
नयन लुभावन चित्र खिंचे थे
अब इक कंकड़ चुभ जाने से, मैं रस्ते को दोष न दूंगा
जिस क्यारी को हाथ लगाया,
उसमें फूल खिले; क्या कम है?
जिस पगडण्डी को अपनाया,
उस पर मीत मिले; क्या कम है?
रेले-मेले, खेल-तमाशे, उत्सव के पल पाये यहाँ से
अब कुछ सन्नाटा छाने से, मैं रस्ते को दोष न दूंगा
झोली भरकर सुख पाया है
चुटकी भर दुःख पर क्या रोना
इस दुःख से सँवरेगा शायद
जीवन का इक सूना कोना
वटवृक्षों की छाँव मिली है, हर धारा पर नाव मिली है
सीने तक पानी आने से, मैं रस्ते को दोष न दूंगा
मेरा काम सफ़र करना है
पथ का निर्धारण उसका है
मैं अपना किरदार जिऊंगा
बाक़ी निर्देशन उसका है
शिखरों को छूने की इच्छा इन राहों ने पूरी की है
थोड़ी साँसें चढ़ जाने से
मैं रस्ते को दोष न दूंगा
© चिराग़ जैन
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