Sunday, February 6, 2022

लता मंगेशकर की विदाई

लता जी का जाना, किसी सरस्वती के साकार से निराकार हो जाने जैसा अनुभव है। बहुत लम्बी तपस्या के बाद वरदान देने को प्रकट हुई किसी देवी के अंतर्धान हो जाने पर तपस्वी को जो अनुभूति होती होगी, ठीक उसी अनुभूति से आज भारत का एक-एक बाशिंदा गुज़र रहा है।
भारतभूमि के सहस्रों पुण्य फलित हुए तब जाकर तिरानबे वर्ष पहले देवी ने इस धरा पर जन्म लिया और भारतीय संगीत उस देवी के सुरम्य वरदानों से निखर उठा। अलाप, मुरकी और गायन की ऐसी-ऐसी हरक़तें संगीत के आंगन में किलोल करने लगीं कि कान से लेकर मन तक निहाल हो गया। ‘मेरी आवाज़ ही पहचान है’ गाते हुए जब उन्होंने ‘आवाज़’ शब्द गाया तो ऐसा लगा जैसे उनके कण्ठ में विद्यमान माँ वाणी लास्य कर उठीं। ‘नैनों में बदरा छाए’ गीत ने जब उनके कण्ठ का तीर्थ किया तो ऐसा लगा जैसे धैर्य के उत्तुंग शिखर से मिलन कि प्यास का झरना फूट पड़ा हो। ‘लग जा गले’ के शब्दों को जब उस स्वर का संसर्ग मिला तो ऐसा लगा मानो दुर्भाग्य के द्वार पर खड़े सौभाग ने वक़्त के उस लम्हे को अपने बाहुपाश में समेट लिया हो। और ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ को जब लता जी ने अपनी आवाज़ दी तो ऐसा लगा कि हिमालय के वैराट्य में साकार होकर माँ भारती बिलखते हुए अपने वीर बेटों का शौर्य गा रही हो।
पिछली एक शताब्दी से हम भारतीयों को इस आवाज़ की आदत पड़ गयी है। पिछली एक शताब्दी में हम इस सौभाग्य को इतना उपलब्ध मान चुके हैं कि कभी यह विचार ही नहीं आया कि एक दिन ये देवी अंतर्धान हो जाएगी। हम यह कल्पना ही न कर सके कि सुरों के सागर से नित नये नग़मे उलीचने वाली यह मेरुशिला एक दिन अचानक विलीन हो जाएगी। उनके सहज जीवट ने कभी आभास ही नहीं होने दिया कि आयु का देवता इस काया की भी उम्र का हिसाब रख रहा होगा। हम सोच ही न सके कि भारत में एक दिन ऐसा भी सूरज उगेगा, जिसके भाग्य में लता मंगेशकर को साँस लेते देखने की लकीर नहीं होगी।
आज सोशल मीडिया देखा तो ऐसा लगा जैसे एक बार फिर एक कलाकार तमाम विषाद, तमाम विद्रूपताओं और तमाम नकारात्मकताओं के आगे अपने पूरे अस्तित्व के साथ अड़ गया है। आज जिधर देखो उधर लता ही लता है। कहीं उनके गीत, कहीं उनकी गुनगुनाहट, कहीं उनकी यादें, कहीं उनके चित्र और कहीं उनकी बातें...! आज कला ने फिर पूरे देश के शोर-शराबे को सुरों से ढँक लिया है।
आज बहुत दिन बाद, दुःख में ही सही; लेकिन पूरा देश एक ही सुर में कोरस कर रहा है। आज बहुत दिन बाद; दुःख में ही सही; लेकिन पूरे देश की आँखों में एक ही रंग के आँसू है। आज बहुत दिन बाद पूरा देश एक ही लय में मौन है।
लता जी के महाप्रयाण पर मैंने अपनी पलकों के नम किनारों पर खड़े होकर करोड़ों सुबकियों की आवाज़ सुनी है। बेशक़ लता जी इस देश के सवा सौ करोड़ लोगों से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिली थीं लेकिन आज पहली बार ऐसा लग रहा है कि इस देश के सवा सौ करोड़ लोगों ने उन्हें किस हद्द तक अपना माना हुआ है।
वसन्त पंचमी के दिन श्वेतवर्णी लता मंगेशकर निराकार हुई हैं। देश उनसे रोज़ बतियाता हो ऐसा नहीं है लेकिन देश उनकी आवाज़ सुने बिना कोई दिन नहीं बिताता यह सत्य है।
तिरंगे से लेकर हर रंग आज उदास है। एक सम्पूर्ण कलाकार अपनी भरपूर कृपा लुटाकर ऐसे जा रहा है ज्यों अपने सातों रंग बिखेरकर कोई इंद्रधनुष अदृश्य हो गया हो।
जहाँ से गुज़र रहा हूँ, वहीं लता जी की आवाज़ सुनाई दे रही है। पूरा देश उन्हें बताना चाहता है कि दीदी! आप कितनी भी ज़िद्द कर लो, आप हमारे बीच से कहीं जा न सकोगी।

~चिराग़ जैन

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